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Ashtanga Hridaya Prashnavali (अष्टाङ्गहृदय प्रश्नावली)

191.00

Author Dr. Mamata Mittal & Dr. Rakesh Gupta
Publisher Chaukhambha Sanskrit Sansthan
Language Hindi
Edition 2019
ISBN 978-93-81608-45-6
Pages 224
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSS0167
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Description

अष्टाङ्गहृदय प्रश्नावली (Ashtanga Hridaya Prashnavali) बीसवी सदी विशेषकर इसके उत्तरार्ध में शिक्षा, साहित्य, विज्ञान (चिकित्सा विज्ञान सहित) एवं प्रौद्योगिकी आदि सभी क्षेत्रों के सर्वाङ्गीण उच्चस्तरीय विकास की तीव्रगति से प्रवाहित धारा की गति इस इक्कीसवीं सदी में भी तीव्र से तीव्रतर होती जा रही है। इस प्रगति ने मानव जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित किया है। आज का मानव चन्द्र एवं मङ्गल ग्रहों को भी अपना भ्रमण-स्थल बनाने को आतुर है।

किसी भी क्षेत्र चाहे वह साहित्य हो, विज्ञान हो या हो प्रौद्योगिकी, उसकी उन्नति एवं विकास का आधार तद्विषयक शिक्षा ही होती है। स्वाभाविक है कि शिक्षा की सर्वोच्च उन्नति एवं प्रगति अनिवार्य है। आयुर्वेद इससे अछूता नहीं है। इसी बीसवी सदी के उत्तरार्ध के प्रारम्भिक वर्षों में ही गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय में आयुर्वेद की स्नातकोत्तर शिक्षा का प्रावधान हुआ, उपाधि थी H.P.A. (Higher proficiency in ayurveda – आयुर्वेद में उच्च प्रवीणता या निपुणता । तत्पश्चात् १९६३ ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के College of Medical Sciences के अन्तर्गत स्थापित P.G.1.1.M. (Post graduate Institute of Indian Medicine) में आयुर्वेद की स्नातकोत्तर शिक्षा का प्रारम्भ हुआ उपाधि थी D. Ay.जो बाद में M.D. Ay. या M.S. Ay. में परिवर्तित हो गई। इस संस्थान का प्रारम्भ आयुर्वेद के पाँच विभागों द्वारा हुआ जो सम्प्रति विशिष्टताओं के आधार पर पन्द्रह विभागों में परिवर्तित हो गए है। भविष्य दृष्टा स्वर्गीय प्रो. प्रियव्रत शर्मा जी ने दशको पूर्व ही आयुर्वेद के षोडशाङ्गों की परिकल्पना की थी, यह सम्भव है कि निकट भविष्य में ही आयुर्वेद की अन्य विशिष्टताओं के आधर पर यह संख्या षोडश से भी आगे चली जाय।

मानव अपने जीवन के स्तर को उच्च से उच्चतर बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। अपेक्षाकृत आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर होने से आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील प्रतिस्पर्धियों की संख्या में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है इस वृद्धि में अबाध गति से बढ़ती जनसंख्या-वृद्धि का भी महत्वपूर्ण योगदान है, जो अल्प विकसित एवं विकासशील देशों में अपेक्षाकृत अधिक है। सभी प्रतिस्पर्धियों को शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश दे पाना किसी भी संस्था के लिए असम्भव है, स्वाभाविक है कि सभी प्रतिस्पर्धियों में से उच्चस्तरीय या चयन अनिवार्य है। इस चयन की अनेक विधाओं पर प्रयोग हुए। सभी पक्षों से पूर्णरूपेण त्रुटिविहीन विधा के अन्वेषण से निकली हुई विधा है “बहुविकल्पीय प्रश्न” (Multiple choice question or MCQ)। सम्प्रति इसी विधा का प्रयोग सभी संस्थाओं में किया जा रहा है।

आयुर्वेद के विषयों में इस विधा के प्रश्नोत्तर बनाना प्रारम्भ में कुछ कष्टसाध्य सा था परन्तु नवोदित सुयोग्य अध्यापकों एवं लेखकों ने इस प्रकार के प्रश्नोत्तरों की कुछ पुस्तकें निर्मित की है जो प्रकाशित हो शिक्षार्थियों की सहायता कर रही हैं, परन्तु किसी एक ग्रन्थ के सभी अध्यायों को पृथक् पृथक् कर प्रश्नोत्तर बनाने का डॉ ममता मित्तल एवं डॉ. राकेश गुप्ता का सम्भवतः यह प्रथम प्रयास है। प्रखर एवं स्पष्ट दृष्टि, तीव्र वृद्धि तथा विषय के समुचित ज्ञान से ओत प्रोत युवा साहसी लेखकों का यह प्रयास सराहनीय है। उच्चतम/श्रेष्ठतम लेखक की भी किसी भी कृति को कभी पूर्ण नहीं कहा जा सकता; इस पुस्तक में भी आवश्यकता है एवं सम्भावना है इसके परिवर्धन, परिसंस्करण एवं पुनरावलोकन की विशेषकर अल्पबुद्धि विद्यार्थियों की बुद्धिगम्यता हेतु ‘कूट’ विकल्पों के सरलीकरण एवं अहिन्दी भाषी विद्यार्थियों के ज्ञानार्थ आंग्लभाषा में अनुवाद की । मुझे पूर्ण विश्वास है यह दोनों लेखक आयुर्वेद के अन्य ग्रन्थों से भी उच्चतम स्तर के प्रश्नोत्तर लिखकर भावी विद्यार्थियों के मार्गदर्शक बनेगें। ये प्रश्नोत्तर न केवल विद्यार्थियों वरन् शिक्षकों के लिए भी उपादेय हैं।

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