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Bhagawat Navneet (भागवत नवनीत)

207.00

Author Sri Ramchandra Keshav Dongareji
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition 11th edition
ISBN -
Pages 624
Cover Hard Cover
Size 19 x 3 x 27 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0075
Other Code - 2009

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Description

भागवत नवनीत (Bhagawat Navneet) परमात्मा श्रीकृष्ण का दर्शन करने से मानव-जन्म सफल होता है। मानव अपनी शक्ति और बुद्धि का उपयोग भगवान्के लिये करे तो मानव को मरने से पूर्व ही भगवान्का प्रत्यक्ष दर्शन हो सकता है। मानव-शरीर की यह विशेषता है कि भोग और भगवान् दोनों ही इस शरीर में मिलते हैं। मानवेतर सभी प्राणियों को केवल भोग मिलता है, भगवान्का दर्शन नहीं होता। सुख भोगने से दुःख का अन्त नहीं होता। राजा हो या रंक या स्वर्ग का देव ही क्यों न हो – बहुत सुख भोगने पर भी उसको शान्ति नहीं मिलती।श्रीकृष्ण-दर्शन से दुःख की समाप्ति होती है। जब तक मानव आत्म स्वरूप में ही शान्ति पूर्वक भगवान्का दर्शन नहीं करता, तब तक दुःख का अन्त नहीं होता। इस लिये श्रीकृष्ण-दर्शन की इच्छा रखो। भगवान्का दर्शन करने की इच्छा होते ही पाप छूटने लगता है। जबकि संसार का कोई भी भोग भोगने की इच्छा होते ही पाप का आरम्भ होता है।

श्रीकृष्ण-दर्शनकी इच्छा रखकर जो साधन करता है, उसको सभी साधु-सन्त आशीर्वाद देते हैं, किंतु जो भगवान्‌को भूलकर मायामें फँस जाता है, उसको कोई सन्त आशीर्वाद नहीं देते। आप भगवान्का दर्शन करनेकी इच्छा रखकर साधन करो – इससे बहुत शान्ति मिलेगी। श्रीराम- कृष्ण-दर्शनके लिये जो प्रयत्न नहीं करता है, उसको अन्तकालमें बहुत दुःख होता है। भगवान्का दर्शन करने की इच्छा – शुभेच्छा है। शुभेच्छा जीवन और मरणको सुधारती है। अशुभ इच्छा जीवनको बिगाड़ती है और मरणको भी बिगाड़ती है। शुभेच्छाको भगवान् सफल करते हैं। ‘शुभ’ शब्दका अर्थ है- भगवान्। भगवान्के दर्शनकी जिसको इच्छा है, भगवान्के चरणोंमें जानेकी जिसकी भावना है- उसकी वह शुभेच्छा सफल होती है।

कदाचित्, कोई साधारण मानव ऐसी इच्छा रखे कि इस जन्ममें मैं करोड़पति बन जाऊँ तो यह अशक्य है। वह बहुत मेहनत करे तो भी करोड़पति नहीं हो सकता, किंतु कोई जीव ऐसा संकल्प करे कि इस जन्ममें ही मुझे श्रीकृष्ण-दर्शन करना है, मेरे जीवनका लक्ष्य भगवान् है- तो उसको इसी जीवनमें भोग मिलता है और भगवान् भी मिलते हैं। जो परमात्माके पीछे पड़ता है, उसको भगवान् संसार का सभी सुख देते हैं, किंतु संसारके लौकिक सुखोंको जो बहुत महत्त्व नहीं देता और सुखमें भी सतत भक्ति करता है, उसीको भगवान् मिलते हैं। आजसे ही आप ऐसी इच्छा रखो कि मुझे भगवान्का दर्शन करना है। आपका जीवन सुधरेगा, आपका मरण भी मंगलमय होगा।

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