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Bharatiya Jyotish Nakshatra Vidya (भारतीय ज्योतिष नक्षत्र विद्या)

800.00

Author Prof. Sacchidanand Mishra
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st Edition 2016
ISBN 978-93-81189-26-9
Pages 624
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0049
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Description

भारतीय ज्योतिष नक्षत्र विद्या (Bharatiya Jyotish Nakshatra Vidya) वेदाङ्गों में शीर्ष स्थानीय होने से ज्योतिषशास्त्र की प्राचीनता एवं प्रमाणिकता स्वतः सिद्ध हो जाती है फिर भी आधुनिक परम्परा के अनुसार ऐतिहासिक तथ्यों द्वारा इसकी पुष्टि का प्रयास किया जाता है। अनेक इतिहासकारों ने वास्तविकता को समझते हुए भी भारतीय होने के कारण भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता को स्वीकार करने से संकोच किया है। परिणामतः उन्हीं के समकालीन तथा उन्हीं की परम्परा वालों ने कहीं कहीं आंशिक रूप से तथा कहीं कहीं समग्र रूप से उनके विचारों का खण्डन भी किया है। इससे भिन्न भारतीय परम्परा रही है जो विचारों के खण्डन में नहीं अपि तु मण्डन में विश्वास रखती रही है। इसीलिए कहा गया है पण्डिताः समदर्शिनः।

भारत में सभी प्रकार के विचारों का स्वागत किया जाता था, अनन्तर उन पर मनन चिन्तन तथा परस्पर मन्थन किया जाता था। सर्वाङ्गीण पुष्ट होने पर उसे मान्यता भी दी जाती थी। कोई भी शास्त्र देश और जाति की सीमा से ऊपर होता है। अतः शास्त्र के अध्ययन में वैचारिक संकीर्णता तथा पूर्वाग्रह सर्वथा बाधक होता है। ऐसे ही पूर्वाग्रहग्रहीत विचारकों से आहत प्रबुद्ध लेखक एवं विचारक प्रो. सच्चिदानन्द मिश्र, अध्यक्ष ज्योतिषविभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने अपने उद्गार वैचारिक समीक्षा के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जो भारतीयज्योतिष-नक्षत्रविद्या नामक ग्रन्थ के रूप में प्रस्तुत है। इस ग्रन्थ में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ-साथ ज्योतिष के मूल सिद्धान्तों को स्थापित किया गया है तथा सम्बन्धित सन्दर्भों में आधुनिक सिद्धान्तों के पक्ष को प्रस्तुत कर उनकी समीक्षा की गई है। इसके साथ साथ ज्योतिष का शास्त्रान्तरों से सम्बन्ध, अध्यात्मिक और जागतिक चिन्तन में ज्योतिष की भूमिका का भी यथा सम्भव समावेश इस ग्रन्थ से किया गया है। ग्रन्थ का मुख्य प्रतिपाद्य तो भारतीय ज्योतिष ही है, अतः सिद्धान्त-संहिता-होरा तीनों स्कन्धों के मूलभूत सिद्धान्तों पर विशद् विमर्श के साथ साथ ऐतिहासिक तथ्यों से भरपूर है। अतः अनेक दृष्टियों से यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।

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