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Gupta Samrajya (गुप्त साम्राज्य)

405.00

Author Dr. Parmeshwari Lal Gupta
Publisher Vishwavidyalay Prakashan
Language Hindi
Edition 3rd edition, 2011
ISBN 978-81-7124-726-4
Pages 688
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code VVP0017
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Description

गुप्त साम्राज्य (Gupta Samrajya) इतिहास-लेखन कला भी है और साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग भी। अक्सर इस सम्बन्ध में चर्चा होती रहती है। अकबरनामा, बाबरनामा, जहाँगीरनामा जैसे अनेक ग्रन्थ क्या इतिहास हैं या जीवन-चरित ? इस सम्बन्ध में मत-मतान्तर होते रहते हैं। हमारे पुराण भी इतिहास हैं क्योंकि इनके माध्यम से भारत की प्राचीनतम परिस्थितियों की जानकारी मिलती है, लेकिन आज के देशी और विदेशी इतिहासकार इनको मिथक मानकर स्वीकार नहीं करते। प्राचीन भारतीय इतिहास के सूत्र इतने कम और इतनी अधिक दिशाओं में प्रक्षिप्त हैं कि उनको सुनिश्चित रूप देना सहज नहीं है। सुलभ सामग्री का विवेचन और विश्लेषण कर ही इतिहास का रूप तैयार होता है। इस दिशा में डॉ० परमेश्वरीलाल गुप्त का भगीरथ प्रयास प्रशंसनीय है। ‘गुप्त-साम्राज्य’ का राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक इतिहास तैयार करने में उन्हें अनेक कठिनाइयों से गुजरना पड़ा है। शोधपरक सामग्री, उत्खनन से प्राप्त सिक्के, टेराकोटा प्रभृति के विश्लेषण से इतिहास का रूप निर्मित होता है।

इस ग्रन्थ के लेखक ने सन् 1970 ई० में इसे प्रकाशित कराया था। तब से शोधादि सामग्री तथा मुद्राओं से अनेक ऐसे तथ्य आए जिनसे पुनर्लेखन तथा नई सामग्री का विवेचन-विश्लेषण करना पड़ा। प्रस्तुत ग्रन्थ का द्वितीय संस्करण सन् 1991 ई० में प्रकाशित हुआ था। लेखक का श्रमसाध्य अनुसन्धान तब से जारी रहा है। मुद्रा-शास्त्री होने की वजह से तथा नई-नई सामग्री प्राप्त होने से विषय-वस्तु में परिवर्तन, परिवर्धन और विवेचन करना पड़ा। भारत के प्राचीन इतिहास में ‘गुप्त-वंश’ या ‘गुप्त-साम्राज्य’ उत्कर्षपूर्ण विरासत है। लेखक आजीवन साधक के रूप में इस कार्य में निमग्न रहे हैं। ग्रन्थ के इस तीसरे संस्करण में इतिहास-सम्मत आधुनिकतम तथ्यों तथा शोधपूर्ण सामग्री का समावेश किया गया है जिससे स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को पूर्वापेक्षा नई सामग्री पढ़ने को मिलेगी। परमेश्वरीलाल गुप्त इस धरती पर नहीं हैं, लेकिन उनका शोधसम्पन्न विवेचन पाठकों को आगे के अध्ययन में सहायता प्रदान करेगा।

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