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Gyan Ganj (ज्ञानगंज)

76.50

Author Pt. Gopinath Kaviraj
Publisher Vishwavidyalay Prakashan
Language Hindi
Edition 2022
ISBN 978-81-89498-65-8
Pages 120
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code VVP0008
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Description

ज्ञानगंज (Gyan Ganj) इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में कविराजजी ने ज्ञानगंज के बारे में विस्तार से स्थूल परिचय दिया है। अपने गुरुदेव की जीवनी में उन्होंने यह बताया है कि वर्धमान में रहते समय जब कुत्ते ने उन्हें काटा तब परमहंस नीमानन्द ने उनकी जीवन-रक्षा की थी। बाद में ढाका से उन्हें तथा उनके सहपाठी हरिपद को अपने साथ लेकर ज्ञानगंज ले आये थे। उन दिनों विशुद्धानन्दजी की उम्र १४ वर्ष की थी। ज्ञानगंज में विशुद्धानन्दजी लगभग २० वर्ष तक योग और विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करते रहे। महर्षि महातपा ने उन्हें शिष्य बनाकर शक्ति-संचार किया था। परमहंस श्यामानन्द सूर्य-विज्ञान और परमहंस भृगुराम योग की शिक्षा देते रहे।

ज्ञानगंज में प्रथम बार पहुँचने पर विशुद्धानन्दजी ने जो दृश्य देखा, उसका वर्णन विस्तार से इस पुस्तक में है। प्राकृतिक परिवेश, आश्रम के निवासियों का परिचय, परमगुरु महातपा के निवास स्थान के बारे में, दीक्षा की घटना आदि। इन बातों से यह स्पष्ट है कि ज्ञानगंज नामक स्थान स्थूल रूप से तिब्बत के किसी विशेष स्थान पर है। यहाँ साधारण व्यक्ति नहीं पहुँच पाते। केवल योगैश्वर्यसम्पन्न योगी या उच्चकोटि के साधक ही जा सकते हैं।

कविराजजी जो कि स्वयं ज्ञानगंज के चमत्कारों को प्रत्यक्ष रूप से देख चुके थे, फिर भी इस पुस्तक में उन्होंने उसका परिचय सर्वत्र सूक्ष्म रूप से दिया है। एक जगह आप लिखते हैं-“कहा जाता है कि ज्ञानगंज हमारी इस परिचित पृथिवी पर एक विशेष गुप्त स्थान है। किन्तु वह इतना गुप्त है कि विशिष्ट शक्ति के विकास न होने से तथा उस स्थान के अधिष्ठाता की आज्ञा न होने से मर्त्यलोक के जीव को दिखाई नहीं देता। प्रत्येक सिद्धभूमि की यही विशेषता है। पारमार्थिक ज्ञानगंज का पता जानना सभी के लिए सम्भव नहीं है। कुछ लोगों को ज्ञानगंज का पता चल गया है, ऐसा सुनने में आता है। वह व्यावहारिक ज्ञानगंज से संश्लिष्ट समझना चाहिए।”

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