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Markandey Puran (मार्कण्डेयपुराण)

135.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition 29th edition
ISBN -
Pages 301
Cover Hard Cover
Size 19 x 2 x 27 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0087
Other Code - 539

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Description

मार्कण्डेयपुराण (Markandey Puran) पुराण भारत तथा भारतीय संस्कृतिको सर्वोत्कृष्ट निधि हैं। ये अनन्त ज्ञान-राशिके भण्डार हैं। इनमें इहलौकिक सुख-शान्तिसे युक्त सफल जीवनके साथ-साथ मानवमात्रके वास्तविक लक्ष्य – परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति तथा जन्म-मरणसे मुक्त होनेका उपाय और विविध साधन बड़े ही रोचक, सत्य और शिक्षाप्रद कथाओंके रूपमें उपलब्ध हैं। इसी कारण पुराणोंको अत्यधिक महत्त्व और लोकप्रियता प्राप्त है; परन्तु आज ये अनेक कारणोंसे दुर्लभ होते जा रहे हैं।

पुराणोंकी ऐसी महत्ता, उपयोगिता और दुर्लभताके कारण कुछ पुराणोंके सरल हिन्दी- अनुवाद ‘कल्याण ‘के विशेषाङ्कोंके रूपमें समय-समयपर प्रकाशित किये जा चुके हैं। उनमें ‘संक्षिप्त मार्कण्डेय-ब्रह्मपुराणाङ्क’ भी एक है। ये दोनों पुराण सर्वप्रथम संयुक्तरूपसे ‘कल्याण’ के इक्कीसवें (सन् १९४७ ई०) वर्षके विशेषाङ्कके रूपमें प्रकाशित हुए थे। पश्चात्, श्रद्धालु पाठकोंकी माँगपर अन्य पुराने विशेषाङ्कोंकी तरह इनके (संयुक्तरूपमें) कुछ पुनर्मुद्रित संस्करण भी प्रकाशित हुए। पुराण-विषयक इन विशेषाङ्कोंकी लोकप्रियताको ध्यानमें रखते हुए अब पाठकोंके सुविधार्थ इस प्रकारसे संयुक्त दो पुराणोंको अलग-अलग ग्रन्थाकारमें प्रकाशित करनेका निर्णय लिया गया है। तदनुसार यह ‘संक्षिप्त मार्कण्डेयपुराण’ आपकी सेवामें प्रस्तुत है। (इसी तरह ‘संक्षिप्त ब्रह्मपुराण’ भी अब अलगसे ग्रन्थाकारमें उपलब्ध है।)

‘मार्कण्डेयपुराण’ का अठारह पुराणोंकी गणनामें सातवाँ स्थान है। इसमें जैमिनि-मार्कण्डेय- संवाद एवं मार्कण्डेय ऋषिका अभूतपूर्व आदर्श जीवन-चरित्र, राजा हरिश्चन्द्रका चरित्र-चित्रण, जीवके जन्म-मृत्यु तथा महारौरव आदि नरकोंके वर्णनसहित भिन्न-भिन्न पापोंसे विभिन्न नरकोंकी प्राप्तिका दिग्दर्शन है। इसके अतिरिक्त इसमें सती मदालसाका आदर्श चरित्र, गृहस्थोंके सदाचारका वर्णन, श्राद्ध-कर्म, योगचर्या तथा प्रणवकी महिमापर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है। इसमें देवताओंके अंशसे भगवती महादेवीका प्राकट्य और उनके द्वारा सेनापतियोंसहित महिषासुर- वधका वृत्तान्त भी विशेष उल्लेखनीय है। इसमें श्रीदुर्गासप्तशती सम्पूर्ण – मूलके साथ हिन्दी- अनुवाद, माहात्म्य तथा पाठकी विधिसहित विस्तारसे वर्णित है। इस प्रकार लोक-परलोक- सुधारहेतु इसका अध्ययन अति उपयोगी, महत्त्वपूर्ण और कल्याणकारी है। अतएव कल्याणकामी सभी साधकों और श्रद्धालु पाठकोंको इसके अध्ययन-अनुशीलनद्वारा अधिक-से-अधिक लाभ उठाना चाहिये।

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