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Patanjala Yog Darshanam (पतञ्जलयोगदर्शनम्)

127.00

Author Acharya Dinesh Shukla
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2015
ISBN 978-93-81189-43-6
Pages 170
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0076
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Description

पतञ्जलयोगदर्शनम् (Patanjala Yog Darshanam) योग एक सूक्ष्म अध्यात्म विद्या है, जिसके माध्यम से योगीजन प्रभु का साक्षात्कार करते और भवसागर से तर जाते हैं एवं ब्रह्म के सानिध्य में रहकर परान्तकाल (३१ नील, दस खरब, चालीस अरब वर्ष) तक मोक्ष का आनन्द लेते और स्वच्छन्द विचरते हुए परमात्मा की इस अ‌द्भुत सृष्टि को देखते हैं। मनुष्य योनि में रहकर ही योगसाधना करके मानवजीवन के फलचतुष्टय- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। हिरण्यगर्भ योग के प्रथम प्रवक्ता है। हिरण्यगर्भ और कोई नहीं, परमात्मा के ज्योतिर्मय स्वरूप का ही नाम है। परमात्मा ने वेदों में योग का साङ्गोपाङ्ग वर्णन किया है। महर्षि पतञ्जलि ने समाधिप्रज्ञा से योग का पूर्ण विज्ञान समझा और विश्वकल्याण के लिए उसे योगदर्शन के सूत्रों के रूप में क्रमबद्ध कर दिया। पातञ्जल योगदर्शन योगविद्या का अनुपम और पूर्ण अन्य है। इसमें गागर में सागर भरा है।

आज के इस युग में परम श्रद्धेय स्व० महेश योगी एवं वर्तमान में योगऋषि रामदेव जी के द्वारा योग का एक सुन्दर, सुखद एवं सात्त्विक वातावरण बन गया है, जिससे विश्व के करोड़ों लोग योगाभ्यास में प्रवृत्त हुए हैं; किन्तु यह ध्यान देने की बात है कि यह बहिरङ्ग योग है और प्राणायाम एवं व्यायाम का एक बढ़िया सम्मेलन है। इसके द्वारा शरीर को स्वस्थ, नीरोग एवं योगसाधना के अनुकूल एवं सक्षम बनाया जाता है; किन्तु योग का पूर्ण विज्ञान तो महर्षि पतञ्जलि का अष्टाङ्गयोग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि) ही है। इन योग के आठ अङ्गो में भी प्रारम्भ के दो अङ्ग- यम एवं नियम योगविद्या की आधारशिला हैं। उसमें भी यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह) अत्यन्त अनिवार्य है। जो इन पाँच यमों का, जिन्हें बौद्ध एवं जैन विद्वानों ने पञ्चशील का नाम दिया है, पालन नहीं करता, वह अपराधी है। उसका चित्त कभी योगसाधना में प्रवृत्त नहीं हो सकता।

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