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Shri Ramcharitamanas (श्रीरामचरितमानस)

70.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition 201st edition
ISBN -
Pages 672
Cover Hard Cover
Size 10 x 3 x 14 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0050
Other Code - 85 (मूल गुटखा)

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Description

श्रीरामचरितमानस (Shri Ramcharitamanas) पाठक यह जानते ही हैं कि इस गुटके में वही पाठ लिया गया है, जो ‘कल्याण’ के ‘मानसाङ्क’ में छपा था। पूज्यपाद श्रीगोस्वामी जी के हाथ की लिखी हुई कोई पूरी प्रामाणिक प्रति प्रयास करने पर भी न मिलने के कारण हम लोग शुद्ध पाठ का दावा तो नहीं कर सकते, परंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जो कुछ पुरानी से पुरानी सामग्री हमें प्राप्त हो सकी, उसका अपनी समझ के अनुसार ईमानदारी से उपयोग किया गया है। बाल काण्ड की प्रति सबसे पुरानी श्रीअयोध्या जी के श्रावण कुञ्जकी है, जो संवत् १६६१ की लिखी है। अयोध्या काण्ड की प्रति भी राजा पुरकी है, जो गोस्वामी जी के हाथ की लिखी बतलायी जाती है और सुन्दरकाण्ड की एक प्रति अवधप्रान्त के दुलही नामक स्थान में मिली थी, जो संवत् १६७२ की लिखी है। ये तीनों काण्ड श्रीगोस्वामी जी के समय के लिखे हैं; इनके सिवा शेष काण्ड उनके समय के नहीं मिल सके। इसलिये बाल काण्ड, अयोध्या काण्ड और सुन्दरकाण्ड का पाठ तो प्राय: उपर्युक्त प्रतियों से लिया गया है तथा शेष काण्डों का पाठ श्रीभागवत दास जी की प्रति से लिया गया है, जो उपलब्ध प्रतियों में सबसे अधिक विश्वसनीय तथा प्रामाणिक मानी जाती है।

कुछ सज्जन कहते हैं कि मानस में शुद्ध संस्कृत के शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा क्यों गया है और इसमें प्रायः ‘श’ के स्थानमें ‘स’, ‘व’ की जगह ‘ब’, ‘य’ के स्थान में ‘ज’ आदिका प्रयोग क्यों किया गया है? इसका उत्तर यह है कि गोस्वामी जी ने यह ग्रन्थ संस्कृत में नहीं लिखकर ‘ग्रामीण भाषा’ में लिखा है। ‘भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति’, ‘भाषा बद्ध करबि मैं सोई’, ‘भाषा भनिति’, ‘ग्राम्यगिरा’ आदि से यह स्पष्ट है। ऐसी स्थिति में उनके लिये यह आवश्यक नहीं था कि वे अपनी रचना में संस्कृत के नियमों का पालन करते। संस्कृत के शब्द यदि बोलचाल की भाषा में तोड़-मरोड़कर बोले जाते हैं और उनका अन्य प्रकार से उच्चारण होता है तो उस बोलचाल की भाषा में रचना करने वाला विद्वान् अपनी रचना में उन शब्दों का वैसे ही प्रयोग करेगा और उसी में उसकी चतुराई मानी जायगी। प्राचीन काल के संस्कृत विद्वानों के द्वारा रचित नाटकों में स्त्रियों और सेवकों के संवाद प्राकृत भाषा में ही कराये गये हैं और उनमें प्राकृत की रीति के अनुसार ही शब्दों का प्रयोग हुआ है, इससे जैसे संस्कृत के उन विद्वानों को कोई दोषी नहीं मानता, वैसे ही श्रीगोस्वामी जी भी दोषी नहीं हैं। उन्होंने श्रीरामचरितमानस को बोलचाल की ग्रामीण भाषा में लिखा है, इसलिये उन्होंने ग्रामीण शब्दों का ही व्यवहार किया है। यह तो उनकी चतुराई ही है। अतएव इन ग्रामीण भाषा के शब्दों को सुधारना तो इनकी दृष्टि से उन्हें उलटा अशुद्ध करना है।

उपर्युक्त कथन का यह अभिप्राय नहीं है कि हमारे इस प्रयास को हम सर्वथा शुद्ध बतलाते और भूल-भ्रान्ति से रहित होने का दावा करते हैं। पता नहीं, इसमें कितनी भूलें होंगी। उपर्युक्त निवेदन तो केवल स्थितिको स्पष्ट करने के लिये है। पाठके सम्बन्ध में हमें जिन-जिन महानुभावों से बहुमूल्य सहायता मिली है, हम उन सबके हृदय से कृतज्ञ हैं। अन्त में हम सब लोगों से अपनी त्रुटियों के लिये क्षमा माँगते हैं और भगवान्की वस्तु भगवान्को ही समर्पित करते हैं।

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