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Vakya Padiyam (वाक्यपदीयम ब्रह्मकाण्डम)

80.00

Author Dr. Ramkishor Tripathi
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 1997
ISBN -
Pages 224
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0019
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Description

वाक्यपदीयम (Vakya Padiyam) वाक्यपदीयम् नामक प्रकरण-ग्रन्थ पद एवं वाक्य के प्रतिपादन के लिए महा वैयाकरण श्री भर्तृहरि द्वारा प्रणीत है। “पदञ्च वाक्यञ्चेति वाक्यपदं तदधिकृत्य कुत्तो ग्रन्थः वाक्यपदीयम् ।” वाक्य और पद शब्दों का द्वन्द्वसमास होकर जातिर- त्राणिनां (२।४।६) सूत्र से एकव‌द्भाव होता है। यदि यह एकवद्भाव द्रव्य, जाति का ही होता है; गुण, क्रिया, जाति का नहीं होता है अथवा जाति-प्राधान्य में ही एकबद्‌भाव होता है तो ‘वाक्यञ्च पदञ्चेति वाक्यपदे’ होगा। उभयत्र अभ्हित होने के कारण वाक्य का पूर्वनिपात होता है। ‘वाक्यपदे अधिकृत्य कृतो ग्रन्थः’ इस विग्रह वें शिशुक्रस्दयमसमइन्हें न्द्रजननादिभ्यश्छः (४।३।८८) सूत्र से छ प्रत्यय एवं छ को ड्य होकर वाक्यपदीय शब्द की निष्पत्ति होती है। वाक्यपदीयं प्रकरणम् इत्यर्थः । इस ग्रन्थ में वाक्य एवं पद विषयक विचार प्रान्त है।

पद और वाक्य शब्दविशेय है। अतः शब्दसामान्य स्फोटारूय-शब्दतत्व-ब्रह्म का विवेचन सर्वप्रथम किया गया है। शब्दतत्त्व ब्रह्म जो अनादिनिधन है; वही शब्दविशेष वर्ण, पद, वाक्य का तया अर्थतत्त्व का बीजभूत है। अतः ग्रन्वकार सर्वप्रयम स्फोट-ब्रह्म का विवेवन करते हैं। ग्रत्य में तीन काण्ड है-ब्रह्मकाण्ड, वाक्य काण्ड एवं पदकाण्ड।

अनुबन्ध-चतुष्टय

ग्रन्थ व्याकरण से सम्बद्ध है। अतः शब्द, तदर्थलक्षण ही इसका विषय है। शब्द-साधुत्व-विज्ञान प्रयोजन है। मोक्ष परम्परया प्रयोजन है। साधुत्व-विज्ञान एवं मोक्ष के साथ ग्रन्थ का हेतुहेतुमद्भाव सम्बन्ध है। मोक्षार्थी एवं शब्दसाधुत्व-जिज्ञासु अधिकारी है। उक्त फलद्वय की प्राप्ति के लिए तथा स्फोटास्य ब्रह्मस्वरूप की प्रतिपत्ति के लिए शास्त्रारम्भ आवश्यक है। उपहित ब्रह्म शब्दतत्त्व या स्फोट का साक्षात्कार व्याकरण से तथा अनुपहित विशुद्ध चिद्दरूप परब्रह्म का साक्षात्कार आगम से होता है।

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