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Aadh Shraddh Paddhati (आध श्राद्ध पद्धति)

20.00

Author Shri Dhar Shastri
Publisher Shastri Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2017
ISBN -
Pages 32
Cover Paper Back
Size 17 x 0.5 x 11 (l x w x h)
Weight
Item Code SP0034
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Description

आध श्राद्ध पद्धति (Aadh Shraddh Paddhati) विद्वान् पुरुष को अमावस्या के दिन अवश्य श्राद्ध करना चाहिये। क्षुधा से क्षीण हुये पितर श्राद्धान्न की आशा से अमावस्या तिथि के आने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। जो अमावस्या तिथि को जल या शाक से भी श्राद्ध करता है, उसके पितर तृप्त होते हैं और उसके समस्त पातकों का नाश हो जाता है। यमलोक या स्वर्गलोक में रहने वाले पितरों को भी तब तक भूख-प्यास अधिक होती है, जब तक कि वे माता या पिता से तीन पीढ़ी के अन्तर्गत रहते हैं- जब तक वे श्राद्धकर्ता पुरुष के – मातामह, प्रमातामह या वृद्ध प्रमातामह एवं पिता, पितामह या प्रपितामह पद पर रहते हैं, तब तक श्राद्ध भाग ग्रहण करने के लिये उनमें भूख-प्यास की अधिकता होती है। पितृलोक या देवलोक के पितर तो श्राद्ध काल में सूक्ष्म शरीर से आकर श्राद्धीय ब्राह्मणों के शरीर में स्थित होकर श्राद्ध भाग ग्रहण करते हैं; परन्तु जो पितर कहीं शुभाशुभ भोग में स्थित हैं या जन्म ले चुके हैं, उनका भाग दिव्य पितर आकर ग्रहण करते हैं और जीव जहाँ जिस शरीर में होता है, वहाँ तदनुकूल भोग की प्राप्ति कराकर उसे तृप्ति पहुँचाते हैं। ये दिव्य पितर नित्य एवं सर्वज्ञ होते हैं। पितरों के उद्देश्य से सदा ही अन्न और जल का दान करते रहना चाहिये। जो नीच मानव पितरों के लिये अन्न और जल न देकर आप ही भोजन करता या जल पीता है, वह पितरों का द्रोही है।

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