Aamne-Samane (आमने-सामने)
₹25.00
Author | Jayaprakash Narayan |
Publisher | Sarva Sewa Sangh Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 7th edition |
ISBN | - |
Pages | 52 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSSP0026 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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CompareDescription
आमने सामने (Aamne Samane) साम्यवाद से सर्वोदय तक की लम्बी शोध-यात्रा के अथक पथिक श्री जयप्रकाश नारायण की ‘आमने-सामने’ यह छोटी-सी निबन्ध पुस्तिका है। मुजफ्फरपुर नगर (बिहार) के पार्श्व में स्थित मुसहरी प्रखण्ड में नक्सली आतंक के दिनों में, डेढ़ साल तक रहने के बाद, जयप्रकाशजी ने ग्रामीण भारत की सच्ची और यथार्थ तस्वीर इस निबन्ध पुस्तिका में पेश की है। आजादी के ५० वर्षों के बाद और यह निबन्ध-पुस्तिका लिखने के २७ वर्षों के बाद भी, स्थिति में सुधार का कोई हल्का-सा चिह्न भी नहीं दिखायी देता। बल्कि स्थिति विस्फोटक होती जा रही है।
देश का, खासकर बिहार का ग्रामीण जीवन जातीय हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में झुलस रहा है। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। राजनीति का पूरी तरह अपराधीकरण हो गया है। सत्तालोलुप नेताओं, सामन्ती प्रवृत्तिके लोगों, सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों, लोभी पूँजीपतियों और असामाजिक तत्त्वों की मिलीभगत ने सभी भूमि-सुधार कानूनों को अँगूठा दिखा दिया है। बासगीत का पर्चा हो, गैर मजरूआ भूमि की बन्दोबस्ती हो, न्यूनतम मजदूरी का सवाल हो या भू-दान भूमि के दाखिल-खारिज का प्रश्न हो, सारे प्रयत्न पानी पर की लकीर की तरह हैं। चारों ओर अराजकता है। आतंक है। जंगल राज है।
लोगों का, खासकर गाँव के शोषित मजदूरों का गाँव में, इज्जत से जीना दूभर है।क्रान्ति के अमर पथिक जयप्रकाशजी ने ठीक ही कहा है “गाँव का प्रत्यक्ष भागीदारी लोकतंत्र, ग्राम सभा के रूप में समुचित रीति से काम कर सके, इसके लिए सामाजिक, मनोवैज्ञानिक परिस्थिति तैयार करनी होगी।” वे आगे कहते हैं कि यह चुनौती सिर्फ, हम, ‘सर्वोदय-आन्दोलन-वालों के लिए ही नहीं है, बल्कि सच पूछिए तो शान्तिपूर्ण, सामाजिक परिवर्तन एवं विकास में विश्वास रखनेवाले उन सभी के लिए है जो किसी दल में हैं या दल के बाहर हैं।ग्रामस्वराज्य आन्दोलन में लगे, हम कार्यकर्ताओं को इस निबन्ध-पुस्तिका में आज भी दिशा और प्रेरणा मिलेगी। साथ ही ग्रामीण भारत के भविष्य में दिलचस्पी और शान्तिमय परिवर्तन में विश्वास रखनेवाले प्रत्येक पाठक को मानवीय संवेदना का पवित्र संस्पर्श होगा।यह निबन्ध-पुस्तिका आज भी उपयोगी है, आगे भी रहेगी।इस निबन्ध-पुस्तिका को सर्वसुलभ बनाने में जयप्रकाश अमृत कोष का आर्थिक सहयोग, प्रकाशन को मिला है। इसके लिए सर्व-सेवा-संघ-प्रकाशन, जयप्रकाश अमृत-कोष समिति के सभी मित्रों के प्रति अपनी आन्तरिक कृतज्ञता और आभार व्यक्त करता है।
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