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Adhyatma Path Pradarshak (अध्यात्म पथ प्रदर्शक)

60.00

Author Swami Chidananad Sarswati
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition 2nd edition
ISBN -
Pages 480
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0046
Other Code - 2037

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Description

अध्यात्म पथ प्रदर्शक (Adhyatma Path Pradarshak) संसार में तीन बातें अत्यन्त दुर्लभ हैं – १. मनुष्यत्व (चौरासी लाख योनियों में विचरते हुए दुर्लभ मनुष्ययोनि में जन्म लेना), २. मुमुक्षुत्व (अर्थात् इसी जीवन में परमात्मप्रभु को प्राप्त करने की दृढ़ भावना), ३. महापुरुष की सन्निधि (किसी जीवन्मुक्त महापुरुष का सान्निध्य अथवा सत्संग प्राप्त होना); इनकी प्राप्ति मात्र भगवत्कृपासे होती है।

जिनके हृदय में भगवत्प्रेम का बीज पड़ चुका, जो दैवी- सम्पद्से युक्त हैं, जिन्होंने हृदय से दृढ़तापूर्वक भगवत्-शरणागतिका आश्रय ले रखा है, जिनके संकल्प-विकल्प समाप्त हो चुके हैं और जिनके हृदय में सांसारिक विषयों के प्रति वैराग्य है-वे मनुष्य तो निश्चय ही भगवत्कृपा प्राप्त हैं, धन्य हैं; परंतु प्रत्येक मनुष्य को ऐसी अवस्था सहज प्राप्त नहीं होती। इसीलिये भगवत्कृपा प्राप्ति के निमित्त हमारे शास्त्रों में मनुष्यों की नानाविध प्रकृति एवं रुचि वैचित्र्य का ध्यान रखते हुए अनेक साधन बताये गये हैं।

मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है, यदि उसकी चित्त वृत्ति संसार के विषयों में प्रवृत्त होती हो तो भी उसे अपने परम कल्याण के लिये नित्य विचार का प्रयास करना चाहिये। इसके लिये उसे जीवन्मुक्त महापुरुषों का सत्संग अथवा उनके साहित्य का स्वाध्याय करना चाहिये।

सिहोर-निवासी ब्रह्मलीन संत स्वामी श्री चिदानन्द जी सरस्वती (१८८८-१९६७ ई०) ऐसे ही एक जीवन्युक्त महापुरुष थे। आप बड़े विद्वान् एवं शास्त्रज्ञ थे, ज्ञान होनेके उपरान्त आपने संन्यास ले लिया था और प्रायः एकान्तवास ही करते थे। आपने न तो कोई आश्रम बनाया, न ही शिष्य-मण्डल और न ही आप सुनियोजित प्रवचन-कार्यक्रम करते थे। हाँ! प्रारब्धवशात् आगत किसी जिज्ञासुको थोड़े ही शब्दों में मोक्ष मार्ग की साधना बतला देते थे। इसी एकान्त वास में उनके अन्दर तत्त्व ज्ञान परक अन्यान्य विषयों की स्फुरणा होने लगी, जिसे वे लिपिबद्ध करते जाते। उनके वे लेख कल्याण में बहुत पहले क्रमशः प्रकाशित होते गये। इन लेखों को पढ़कर अनेकों का कल्याण हुआ और इनको गीता प्रेस्स्द्वारा पुस्तकाकार प्रकाशित करने का सतत आग्रह होता रहा, पर कार्य-व्यस्तता के कारण प्रकाशन स्थगित रहा।

भगवत्-इच्छा से अब उन्हीं लाखो में से ४५ लेखों का चयन करके उन्हें छः शीर्षकों-व्यवहार, संसार, उपासना, चिन्तन, भक्ति-साधना एवं ज्ञान के अन्तर्गत विन्यस्त किया गया है। इसमें साधक जीवनोपयोगी लगभग सभी मुख्य विषय आ गये हैं, जिनको चिन्तन-मनन पूर्वक व्यवहार में लाकर आत्म कल्याण के मार्गपर अग्रसर हुआ जा सकता है। आशा है, विचारशील साधक इससे विशेष लाभान्वित होंगे।

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