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Amar Sanskrit Shastra Pratiyogita Manthan (अमर संस्कृत शास्त्र प्रतियोगिता मंथन)

320.00

Author Dr. Shashi Rajjan Kumar Pandey
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Hindi
Edition 1st Edition
ISBN 2014
Pages 978-93-81189-39-9 350
Cover Paper Back
Size 18 x 2 x 24 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0152
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Description

अमर संस्कृत शास्त्र (Amar Sanskrit Shastra) अध्ययनकाल में बहुत से ऐसे विषय होते हैं, जो विश्वविद्यालय भेद से या तो पाठ्यक्रम में नहीं होते हैं, या किन्हीं कारणों से अछूते रह जाते हैं, ऐसी स्थिति में इस पुस्तक का महत्व और भी बढ़ जाता है, जिससे कि पूर्वपठित, अपठित अथवा उपेक्षित सभी विषयों का सुव्यवस्थित अध्ययन किया जा सके, क्योंकि एक भी अंक की कमी प्रतियोगिता के इस धरातल पर हमें सैकड़ों लोगों के पीछे ढकेल देती है तथा चयन की समस्त सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं।

इन सब बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए लेखक का दायित्व और भी बढ़ जाता है कि विषयगत तथ्यों को इस प्रकार से संकलित एवं सम्पादित किया जाए कि अत्यल्प पृष्ठों में समाहित होने के बाद भी समस्त तथ्य इसमें अन्तर्भूत हों, एक भी प्रश्न ऐसा न हो, जिसका उत्तर इस पुस्तक के आधार पर न दिया जा सके।

ध्यातव्य है कि प्रश्नकर्ता सर्वथा स्वतन्त्र होता है, कभी-कभी तो उसके प्रश्न प्रलापमात्र होते हैं, या कभी-कभी उसक `प्रश्न पाठ्यक्रम की सीमा का उल्लंघन कर जाते हैं, अथवा उसके प्रश्न का सटीक उत्तर देना सम्भव नहीं होता है। परन्तु यह समस्या किसी एक व्यक्ति की नहीं है, अपितु समस्त परीक्षार्थियों की समस्या है। अतः इससे घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे किसी व्यक्ति-विशेष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यथासम्भव दिए हुए विकल्पों में से अपने अध्यावसाय के आधार पर तर्कपूर्ण उत्तर देने का प्रयास करना चाहिए। संस्कृतवाङ्मय अपने में कर्म, ज्ञान एवं अध्यात्म से सम्बन्धित अनन्त ग्रन्थ रत्नों को संजोये हुए हैं।

यह वाड्मय उस अवाह समुद्रतुल्य है जिसके गर्भ में असंख्य अमूल्य एवं वर्णनातीत रत्न विद्यमान हैं। वेद, वेदाङ्ग, उपनिषत्, आरण्यक, पुराण, उपपुराण, धर्मशास्त्र, रामायण, महाभारत, काव्य, नाटक, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र एवं कृषिपराशर आदि से सम्बन्धित इतनी अन्वराशि इस वाड्मय में उपलब्ध है जिसके समूचे अध्ययन के लिए परिमित मानव जवीन के अनेकानेक जन्म अपेक्षित हैं। केवल वर्तमान जीवोपयोगिता को देखते हुए एवं विगत वर्षों में परीक्षा जगत् में हुए क्रान्तिकारी परिवर्तन जिसके अनुसार वर्णनात्मक परीक्षाओं का स्थान बहुविकल्पीय एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्नों ने ले लिया है, इसी को ध्यान में रखते हुए संस्कृतवाङ्‌मय का यह अन्य ‘संस्कृतशाख प्रतियोगिता मंथन’ तैयार किया गया है। इस प्रतियोगिता मन्वन में 6000 बहुविकल्पीय एवं वस्तुनिष्ठ प्रत्यक्ष प्रश्न ही प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम अध्याय में वैदिक साहित्य एवं द्वितीय अध्याय में वेदाङ्ग, तृतीय अध्याय में पुराण, श्रीमद्भगवद्‌गीता आदि, चतुर्व अध्याय में दर्शनशास्त्र, पञ्चम अध्याय में साहित्य, काव्य, नाटकादि, षष्ठ अध्याय में अलंकारशास्त्र, सप्तम अध्याय में प्राकृत-प्रकाश एवं सामान्यादि रखा गया है तथा परिशिष्ट में 1 में 2000 सूक्तियों उद्धृत हैं, परिशिष्ट-2 में 128 प्राचीन स्थानों, पर्वतों एवं नदियों का वर्तमान स्थिति स्पष्ट की गई है। परिशिष्ट-3 में प्राचीन भारतीय काल परिभाषादि की विस्तृत जानकारी निहित है। परिशिष्ट-4 में संस्कृत पत्र-पत्रिकाओं का परिचय, परिशिष्ट-5 में गणनावाची शब्द है। परिशिष्ट-6 में वैदिक आख्यानों के सन्दर्भ में उद्धृत है। परिशिष्ट-7 में संस्कृतवाड्मय के ग्रन्थकार उनकी रचनायें एवं काल तथा उनकी विशिष्ट उपाधियों आदि का वर्णन, परिशिष्ट- 8 में वेद, उपनिषद, पुराणोपपुराणादि-सूची, परिशिष्ट-9 में उपसर्ग कृत प्रत्यय, तद्धित प्रत्यय, परिशिष्ट-10 में संस्कृत वाङ्मय के कतिपय अतिविशिष्टार्थ शब्दों का व्याख्यान किया गया है।

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