Ank Vidya (अंक विद्या)
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Author | Gopesh Kumar Ojha |
Publisher | Motilal Banarasidas |
Language | Hindi |
Edition | 2016 |
ISBN | 978-81-208-2119-4 |
Pages | 188 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | MLBD0002 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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अंक विद्या (Ank Vidya) संसार में हम जो भिन्न-भिन्न वस्तुएँ देखते हैं, उनके अनेक रूप हैं। विविध रंगों के मिलने से नये रंग बन जाते हैं। लाल और पीला मिलाने से नारंगी का रंग बन जाता है। पीला और नीला मिलाने से हरा। इस प्रकार सैकड़ों, हजारों रंग बन सकते हैं, परन्तु इनके मूल में वही सात रंग हैं जो इन्द्र धनुष में दिखाई देते है। इन सात रंगों के मूल में भी एक ही रंग रह जाता है जो सफ़ेद, किंवा रंगरहित शुद्ध प्रकाश है। सूर्य की प्रकाश रेखा को ‘प्रिज्म’ में पार करने से सात रंग स्पष्ट दिखाई देते हैं। वैसे, सूर्य की किरण शुद्ध उज्ज्वल विनारंग के प्रतीत होती है।
इसी प्रकार संसार की जो विविध वस्तुएँ हमें दिखाई देती हैं उनमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्त्व हैं। उनमें तत्वों का सम्मिश्रण भिन्न-भिन्न अनुपात और भिन्न-भिन्न प्रकार से है। किसी में कोई तत्व कम है, किसी में कोई अधिक। परन्तु यह समस्त जगत् केवल पांच तत्वों का प्रपंच है। यह पांच तत्व भी केवल आकाश से उत्पन्न हुए हैं। आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी । पृथ्वी का गुण ‘गन्ध’, जल का ‘रस’, अग्नि का ‘तेज’ (रूप), वायु का ‘स्पर्श’ और आकाश का गुण ‘शब्द’ है। जैसे संसार के सभी पदार्थों के मूल में आकाश तत्व है उसी प्रकार, हम यह कह सकते हैं कि संसार के सभी पदार्थों का मूल गुण ‘शब्द’ है। इसी कारण शब्द को ‘शब्द-ब्रह्म’ – अर्थात् परम प्रभु परमेश्वर का प्रतीक माना गया है।
परिणामतः तो सब शब्द ब्रह्म के रूप ही हैं किन्तु भिन्न-भिन्न शब्दों का गुण और प्रभाव भी भिन्न-भिन्न है और प्रत्येक शब्द को अंक या संख्या में परिवर्तित कर उसकी माप की जा सकती है। कोई शब्द (या शब्दावली) ७००० बार आवृत्ति करने पर पूर्णता को प्राप्त होता है तो किसी का १७००० बार आवृत्ति करने पर परिपाक होता है। ‘संख्या’ और ‘शब्द’ के सम्बन्ध से हमारे ऋषि-महर्षि पूर्ण परिचित थे, इसी कारण सूर्य के मंत्र का जप ७०००, चन्द्रमा का ११०००, मंगल का १००००, बुध का ६०००, बृहस्पति का १६०००, शुक्र का १६०००, शनि का २३०००, राहु का १८००० और केतु का १७००० जप निर्धारित किया है। किसी देवता के मंत्र में २२ अक्षर होते हैं तो किसी के मंत्र में ३६। ‘शब्द’ और ‘संख्या’ का घनिष्ठ वैज्ञानिक सम्बन्ध है।
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