Argha Martand (अर्घमार्तण्ड)
₹175.50
Author | Mukundballabh Mishra |
Publisher | Motilal Banarasidas |
Language | Hindi |
Edition | 6th edition, 2015 |
ISBN | 978-81-208-2130-9 |
Pages | 106 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | MLBD0003 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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अर्घमार्तण्ड (Argha Martand)
गिरा गौरि गुरु गणपहर मंगल मंगलमूल । सुमिरत करतल-सिद्धि सब होई ईश अनुकूल ।।
“व्यापारे वसति लक्ष्मीः”
यह बात निविवाद सिद्ध है कि जैसे मनुष्य व्यापार से शीघ्र धनाढ्य हो सकता है वैसे नौकरी, कृषि आदि अन्य कर्मों से नहीं । एतदर्थ शास्त्रकारों ने भी व्यापार में लक्ष्मी का निवास माना है।
व्यापार सफलतार्थ जैसे वृद्धिचातुर्य और देश, काल, परिस्थित्यादि के ज्ञान की आवश्यकता है वैसे ही तदुपयोगी ज्योतिःशास्त्रान्तर्गत अर्धक। ण्ड के ज्ञान की भी परमावश्यकता है, क्योकि जिस प्रकार ग्रहस्थिति द्वारा प्राणियों का सुख, दुःख, हानि, लाभ तथा भूत, भविष्य, वर्तमान काल का फल जाना जाता है उसी प्रकार ग्रहति द्वारा सुभिक्ष, दुभिक्ष, समर्घ, महर्धादि व्यापार भविष्य भी चिरकाल पहले हो जाना जा सकता है। आजकल जैसे स्थानीय बाजारभाव पर राजकीय आदेश तथा समाचार पत्र, तार, रेडियो, टेलीफोन आदि साधनों द्वारा अन्य दूरदेशीय मंडियों के भाव का प्रभाव तुरन्त पड़ता है वैसे ही ग्रहों के राशिचार, नक्षत्रचार, युांत उदयास्त ग्रहवेध, ग्रहण, क्षय, वृद्धि, अधिक मासादि एवं शकुन अर्थात् – किसी विशेष तिथि को बिजली, बादल, वर्षा, वायु उत्पातादि का प्रभाव व्यापारिक वस्तुओं पर तेजी मन्दी के रूप में पड़े बिना नहीं रह सकता। इस अद्भुत प्रभाव को समझ कर लाभ उठाने के लिए ही – मैंने यह पुस्तक भारी खोज से प्राचीन आचार्य तथा अर्वाचीन विद्वानों के मतों का आलोडन करके तथा अपनी वर्षों की विशेष गम्भीर गवेषणा (रिसर्च के साथ लिखो है। अर्थात् इस पुस्तक में प्राचान ग्रन्थों के राशि-नक्षत्रचारादि के फलादेशों में जहाँ-जहाँ जो-जो विशेष अनुभव हुआ है वहाँ-वहाँ वह वह यथास्थान ठीक करके तेजी मन्दी के टके आदि के साथ खिला गया है, और सैंकड़ों नवीन योग अपने वर्षों के अनुभव के आधार पर लिखे हैं, जो कि आप को अन्य किसी भी ग्रन्थ में नहीं मिल सकेंगे ।
इस पुस्तक से तेजो मन्दी के योगों को देखते हुए यह भी ध्यान रक्खें कि-जिस पञ्चाङ्ग के आधार पर हम चान्सों का समय निश्चित कर रहे हैं उस पञ्चाङ्ग की ग्रह स्थिति आकाश से मिलती भी है कि नहीं। प्रायः आजकल गणितश्रम से बचने के लिए स्थूल गणित को सारिणियों से पञ्चाङ्ग (तिथिपत्र) बनाए जाते हैं। उनके उदयास्त ग्रहचार आदि में महान् अन्तर व अक्षम्य अशुद्धियाँ देखने में आती हैं। ऐमे पञ्चाङ्ग तेजी मन्दो के योग देखने में सर्वथा त्याज्य हैं। जिन पञ्चाङ्गों को गणित सूक्ष्म तथा वरावर आकाश- दर्शन से मिलती हो वे ही पञ्चाङ्ग लेकर योगों का मिलान करना चाहिए, अन्यथा हानि की सम्भावना है। जब फलित रूपी वृक्ष मूल अर्थात – ग्रह गणित ही ठीक नहीं तब उसके फल भीतर से कैसे अच्छे सुस्वादु, बलवर्धक हो सकते हैं। अतः पञ्चाङ्ग सूक्ष्म, शुद्ध ग्रहगणित का ही काम में लाइये ।
इस पुस्तक के अन्त में हानि उठाए हुए घाटे में रहने वाले अथवा गरीबी से पीड़ित श्रद्धालु व्यापारियों के हितार्थ कुछ अनुभवसिद्ध प्रयोग भी लिखे हैं, जिन्हें स्वयं करके या सिद्ध पीठों में सुशील, सच्चरित्र, विद्वानों द्वारा कराकर अपनी बिगड़ी जिन्दगी सत्तिया सुधार सकता है। जिनके खानदानी गरीबी चली आ रही हो उसके निवारण का सफल प्रयोग जो कि एक गुप्त रहस्य था लिख दिया है।
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