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Athato Bhakti Jigyasa Set of 2 Vols. (अथातो भक्ति जिज्ञासा 2 भागो मे)

850.00

Author Osho
Publisher Diamond Pocket Books
Language Hindi
Edition 2016
ISBN 81-8419-330-0
Pages 1054
Cover Hard Cover
Size 18 x 8 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code DPB0053
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Description

अथातो भक्ति जिज्ञासा 2 भागो मे (Athato Bhakti Jigyasa Set of 2 Vols.) नाद के स्वागत के साथ, संगीत के सत्कार के साथ, उत्सव की घोषणा के साथ, भक्ति की जिज्ञासा पर निकलते हैं। बजती हुई जगत की ध्वनि में, लोक और परलोक के बीच उठ रहे नाद में भगवान को खोजने निकलते हैं। यह यात्रा संगीत से पटी है। यह यात्रा रूखी-सूखी नहीं है। यहां गीत के झरने बहते हैं, क्योंकि यह यात्रा हृदय की यात्रा है। मस्तिष्क तो रूखा-सूखा मरुस्थल है, हृदय हरी-भरी बगिया है। यहां पक्षियों का गुंजन है, यहां जलप्रपातों का मर्मर है। इसलिए ओम से यात्रा शुरू करते हैं। और ओम पर ही यात्रा पूरी होनी है। क्योंकि जहां से हम आए हैं, वही पहुंच जाना है। हमारा स्रोत ही हमारा अंतिम गंतव्य भी है। बीज की यात्रा बीज तक। वृक्ष होगा, फल लगेंगे, फिर बीज लगेंगे। स्रोत अंत में फिर आ जाता है। जब तक स्रोत फिर न आ जाए, तब तक भटकाव है। इसलिए चाहे कहो अंतिम लक्ष्य खोजना है, चाहे कहो प्रथम स्रोत खोजना है, एक ही बात है। मूल को जिसने खोज लिया, उसने अंतिम को भी खोज लिया।

भक्ति परम है। उसके पार कुछ और नहीं, भगवान भी नहीं। भक्ति है वह बिंदु जहां भक्त और भगवान का द्वैत समाप्त हो जाता है; जहां सब दुई मिट जाती है; जहां दो-पन एक-पन में लीन हो जाता है। ऐसे एक-पन में अगर उसे एक भी कहें तो ठीक नहीं। क्योंकि जहां दो ही न रहे, वहां एक का भी क्या अर्थ ? ऐसी शून्य-दशा है भक्ति, या ऐसी पूर्ण-दशा है भक्ति। नकार से कहो तो शून्य, विधेय से कहो तो पूर्ण, बात एक ही है। लेकिन भक्ति के पार और कुछ भी नहीं।

जैसे बीज होता, फिर बीज से अंकुर होता, फिर अंकुर से वृक्ष होता, फिर वृक्ष में फूल लगते और फिर फूल से गंध उड़ती – गंध है भक्ति। जीवन का अंतिम चरण, जहां जीवन परिपूर्ण होता, सुगंध, आखिरी घड़ी आ गई, इसके पार अब कुछ होने को नहीं, इसलिए सुगंध में संतोष है। न पार होने को कुछ है, न पार की आकांक्षा हो सकती। आकांक्षा करने वाला भी गया, आकांक्षा की जा सकती थी जिसकी वह भी समाप्त हुआ। ऐसी निष्कांक्षा, ऐसी वासनाशून्य, ऐसी रिक्त-दशा है भक्ति। रिक्त, अगर संसार की तरफ से देखें- तो सारा संसार समाप्त हुआ। भरी-पूरी, लबालब, अगर उस तरफ से देखें, परमात्मा की तरफ से देखें- क्योंकि शून्य घट में ही परमात्मा का पूर्ण भर पाता है।

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