Bharatiya Jyotish Shastra (भारतीय ज्योतिष शास्त्र)
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Author | Radha Krishna Mishra |
Publisher | Shri Durga Pustak Bhandar Pvt. Ltd. |
Language | Hindi |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 176 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SDPB0013 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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भारतीय ज्योतिष शास्त्र (Bharatiya Jyotish Shastra) बहुत दिनों से ज्योतिष की शिक्षा हेतु एक विश्वस्त एवं स्वयं शिक्षक पुस्तक की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा था, जो कि ज्योतिष विद्या के जिज्ञासुओं को इस विषय का बिना किसी अन्य पुस्तक की सहायता के प्रारम्भिक ज्ञान कराने में समर्थ हो सके। ज्योतिषाचार्य पं० राधाकृष्ण मिश्र ने अत्यन्त सरल और स्पष्ट पाठों के रूप में इस पुस्तक की रचना इस प्रकार की है कि सीढ़ी पर एक-एक पग रखते हुये ( Step By Step) सवर्वोच्च सोपान पर पहुँचकर इस योग्य बन जाये कि स्वयं कुण्डली का निर्माण कर सफलतापूर्वक भविष्य-फल का कथन करने में सक्षम हो सके।
यह पुस्तक राशि, महीने, पक्ष और तिथियों का ज्ञान देखने की रीति, जन्म कुण्डली निर्माण, मुहूर्त और यात्रा-विचार, वास्तु निर्माण और फलाफल का विचार स्वयं करने के योग्य बना देगी। ज्योतिष के इच्छुक छात्रों को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिये कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल तमाशा नहीं है। यह भौतिक या रसायन विज्ञान की तरह ही शुद्ध विज्ञान है। यह विज्ञान में देवकृपा से प्राप्त हुआ है।
ज्योतिष वेद का अंग है। उसकी सहायता से जन्म या प्रश्न के समय लग्न और ग्रहों की स्थिति का अध्ययन करके भूत में हुई और भविष्य में होने वाली घटनाओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। विषयानुसार ज्योतिष को तीन विभागों में विभाजित किया गया है। वह है- सिद्धान्त, संहिता और होरा। सिद्धान्त का खगोल विज्ञान से सम्बन्ध है, संहिता का मेदिनी ज्योतिष से (संसार, देशों या जनसमूह विषयक घटनाओं से) और होरा का ज्योतिष द्वारा मनुष्य या चेतन जीवों के विषय में होने वाली घटनाओं का ज्ञान प्राप्त करने से सम्बन्ध है।
मान्यता यह है कि हमारे महर्षियों ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर ज्योतिष का दैविक ज्ञान प्राप्त किया था। बाद में उन्होंने जन साधारण के कल्याण के लिये इस विद्या का प्रचार किया। हिन्दू ज्योतिष में जो कुछ भी है, वह सब उन महर्षियों की देन है और उनके द्वारा निर्मित सिद्धान्त आज भी उतने ही मान्य है जितने तब थे जब वे उनके मुख से निकले थे। इन अमूल्य सिद्धान्तों को जिन प्राचीन महापुरुषों और दैवज्ञों ने आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान प्रदान करने हेतु लेखनीबद्ध किया, उनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं – वशिष्ठ, व्यास, वररुचि, वराह मिहिर, पराशर, वेंकटेश, कश्यम, नीलकंठ, जयदेव, गणपति, सत्याचार्य, मणित्थ, जीवशर्मा, महादेव, भास्कराचार्य, आर्यभट्ट आदि।
हमारा पाठकों से यह भी अनुरोध है कि ज्योतिष एक दैविक विज्ञान् है। इसलिये इसका पठन पवित्र मन और विश्वास के साथ करना चाहिये और पाठ आरम्भ करने के पूर्व श्री गणेशजी व अपने इष्टदेव का ध्यान व मानसिक पूजन करना चाहिये ।
अन्त में हम अपने पाठकों को आशीर्वाद देते हुये श्री गणेशजी से प्रार्थना करते हैं कि इस पुस्तक के सुस्पष्ट पाठों द्वारा इन्हें ज्योतिष ज्ञान प्राप्त हो, जिसके प्रति वे जिज्ञासु हैं।
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