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Bharatiya Vastukala Ka Itihas (भारतीय वास्तुकला का इतिहास)

186.00

Author Krishna Datta Vajpayi
Publisher Uttar Pradesh Hindi Sansthan
Language Hindi
Edition 5th edition, 2019
ISBN 978-93-82175-43-8
Pages 187
Cover Paper Back
Size 14 x 1 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code UPHS0029
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Description

भारतीय वास्तुकला का इतिहास (Bharatiya Vastukala Ka Itihas) भारतीय कला में वास्तुकला का महत्वपूर्ण स्थान है। स्थापत्य या वास्तु के विविध अंगों का प्राचीनकाल से ही भारत में इतना अधिक विकास हुआ कि उसे भी एक विशिष्ट और पृथक शास्त्र माना गया। व्यापारियों, धर्मप्रचारकों के शताब्दियों से देश-विदेश में आवागमन के फलस्वरूप भारतीय संस्कृति की व्यापकता बढ़ी। एशिया महाद्वीप के अनेक देशों में न केवल यहाँ की भाषा, रहन-सहन और आचार-विचार को अपनाया गया, अपितु भारतीय स्थापत्य, मूर्तिकला और चित्रकला का भी प्रचार-प्रसार हुआ। भारतीय संस्कृति ने अपनी उदारता एवं मानवीय सरोकारों के कारण अन्य क्षेत्रों की तरह वास्तुकला के क्षेत्र में भी अपना प्रभाव छोड़ा। इस क्रम में सदियों से विभिन्न देशों के विशेषज्ञ भी भारतीय वास्तुकला के सिद्धान्तों से प्रेरणा ग्रहण कर अपनी कृतियों को रूपायित करते रहे है।

‘भारतीय वास्तुकला का इतिहास’ पुस्तक में विद्वान लेखक श्री कृष्णदत्त बाजपेयी ने हड़प्पा सभ्यता युग से वैदिक वास्तु, प्राक् मौर्यकालीन वास्तु, मौर्यकालीन वास्तु शुंग-सातवाहन वास्तु, गुहावास्तु, गांधार तथा वेंगी वास्तु, गुप्तकालीन वास्तु, पूर्व मध्यकालीन वास्तु का विस्तृत वर्णन करते हुए धार्मिक तथा लौकिक पृष्ठभूमि में वास्तुकला का महत्व और भारतीय वास्तुकला का विदेशों में प्रसार आदि विषयों का समीक्षात्मक अनुशीलन किया है। इसके साथ ही प्राचीनतम काल से लेकर तेरहवीं सदी के अन्त तक के भारतीय वास्तु के इतिहास का उल्लेख भी किया गया है। इसका महत्व इसी से आँका जा सकता है कि भारतीय मूर्ति कला तथा चित्रकला के समन्धित अध्ययन के लिए भी भारतीय वास्तुकला का अध्ययन उपयोगी है। गुप्तकालीन भीतर गाँव मन्दिर से लेकर खजुराहो के मन्दिरों तक का विकास मूर्ति एवं चित्रकला का मिला-जुला रूप भी है, जिसका व्यवस्थित और प्रवाहपूर्ण विवरण इस पुस्तक में दिया गया है।

भारतीय वास्तुकला का इतिहास पुस्तक की लोकप्रियता और उपयोगिता का प्रमाण इसके अनेक संस्करण है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान को हिन्दी समिति प्रभाग के इस गौरवपूर्ण प्रकाशन का पंचम संस्करण प्रकाशित करते हुए हम गौरवान्वित है। यह पुस्तक प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्येताओं के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। विश्वास है कि पूर्व संस्करणों की भांति पुस्तक के इस संस्करण का भी शोधार्थियों तथा जिज्ञासु पाठकों के बीच पूर्ववत स्वागत होगा।

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