Bharatiya Jivan Mulya (भारतीय जीवन मूल्य)
₹130.00
Author | Dr. Surendra Verma |
Publisher | Parshawanath Vidyapeeth, Varanasi |
Language | Hindi |
Edition | 1st-edition,1996 |
ISBN | - |
Pages | 220 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | PV00011 |
Other | Dispatched in 3 days |
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भारतीय जीवन मूल्य (Bharatiya Jivan Mulya) जीवन के विविध मूल्यों के स्वरूप और इनके आपेक्षिक महत्त्व का प्रश्न दर्शन का केन्द्रीय विषय है। हमारे देश के प्राचीन तथा मध्ययुगीन विचारक प्रायः मोक्ष की चर्चा करते हैं जो उनकी दृष्टि में जीवन का परम मूल्य है। उपनिषद् काल से ही मोक्ष की चर्चा होती आई है किन्तु रामायण, महाभारत के युग में नीति धर्म की चर्चा प्रधान थी। वाल्मीकि रामायण में तो मोक्ष नाम के पुरुषार्थ का संभवतः उल्लेख भी नहीं है। हमारे दो विशिष्ट महाकाव्य, रामायण और महाभारत का सरोकार मुख्यतः नैतिक प्रश्नों से ही रहा है।
आज के युग में यही नैतिक प्रश्न पुनः सर्वाधिक महत्त्व के हो गए हैं क्योंकि इधर के विचारशील लेखकों की चिंता का मुख्य केन्द्र इसी दुनिया, संसार का जीवन है, यहाँ क़दम क़दम पर व्यक्तियों और वर्गों के स्वार्थ एक दूसरे पर टकराते हैं। आज समाज में भ्रष्टाचार एक महामारी की तरह फैल गया है। सारा विश्व ही उपभोक्ता संस्कृति की भंवर में फंस चुका है और आर्थिक लाभ ही एक मात्र पुरुषार्थ बन गया है। भारत में इस भौतिकवादी दृष्टिकोण के समर्थन के लिए अक्सर यह दलील दी जाने लगी है कि पुरुषार्थ चतुष्टय में अर्थ और काम महत्त्वपूर्ण पुरुषार्थ हैं और उनका सेवन, अतः, निरापद है।
किन्तु वस्तुतः ऐसा है नहीं। अर्थ और काम पुरुषार्थ चतुष्टय की पद्धति में तभी मूल्यवान माने गये हैं जब धर्म द्वारा वे परिसीमित हों और उनका उदात्तीकरण किया जाए। अर्थ और काम की अंधी दौड़ तो अंततः और अवश्यमेव आत्मघाती ही सिद्ध होती है। डॉ० सुरेन्द्र वर्मा ने अपनी पुस्तक भारतीय जीवन मूल्य में इस बिन्दु को विशेष रूप से रेखांकित किया है। हिन्दी में अभी तक मूल्यों के विषय में अलग से सोचने और लिखने की प्रवृत्ति बलवती नहीं रही है। इस दृष्टि से भी डॉ० वर्मा की यह पुस्तक एक सुखद अपवाद प्रस्तुत करती है और नैतिक मूल्यों पर विशेषकर बल देती है। संप्रति डॉ० वर्मा वाराणसी स्थित ‘पार्श्वनाथ विद्यापीठ’ में उपनिदेशक हैं, फलतः उन्होंने अपने चिंतन के दायरे में जैन धर्म-दर्शन को विशेष स्थान दिया है, जिसका प्रभाव इस पुस्तक में स्पष्ट देखा जा सकता है।
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