Brihad Jyotish Sar (बृहद्ज्योतिषसार)
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Author | Dr. Shrikant Tiwari |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2021 |
ISBN | 978-93-81189-80-1 |
Pages | 256 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0038 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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बृहद्ज्योतिषसार (Brihad Jyotish Sar) भारतीय संस्कृति का मूल आधार वेद है। वेद से ही हमें अपने धर्म और सदाचार का ज्ञान प्राप्त होता है। वेद के छ: अंग है-१. शिक्षा, २. कल्प, ३. व्याकरण, ४. निरुक्त, ५. छन्द तथा ६. ज्योतिष। वेदों का सम्यक् ज्ञान कराने के लिए इन छः अंगों की अपनी विशेषता है। मन्त्रों के उचित उच्चारण के लिए शिक्षा, कर्मकाण्ड तथा यज्ञीय अनुष्ठान के लिए कल्प, शब्दों के रूपज्ञान के लिये व्याकरण, अर्थ ज्ञान के निमित्त शब्दों के निर्वचन के लिए निरुक्त, वैदिक छन्दों के ज्ञान हेतु छन्द का और अनुष्ठानों के उचित काल निर्णय के लिए ज्योतिष का उपयोग मान्य है। महर्षि पाणिनी ने ज्योतिष को वेद पुरुष का नेत्र कहा है- ज्योतिषामयनं चक्षुः। वेद के अन्य अंगों की अपेक्षा अपनी विशेष योग्यता के कारण ही ज्योतिषशास्त्र वेद भगवान का प्रधान अंग निर्मल चक्षु माना गया है। नेत्र का कार्य है- सम्यक् अवलोकन। यह नेत्र मानव के सामान्य नेत्र के समान नहीं है, जिसमें भ्रम-लिप्सा एवं प्रमाद आदि के कारण दृष्टिदोष हो जाने से यथार्थ ज्ञान भी मिथ्या प्रतीत होने लगता है, फलतः तथ्य से परे धारणा बन जाती है, किन्तु वेदपुरुष का नेत्र एक ऐसा नेत्र है, एक ऐसी दिव्य-दृष्टि है, जिस दृष्टि से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और समस्त जीवनिकाय प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, व्यवहित-अव्यवहित समस्त कर्म हस्तामलकवत् स्पष्ट दृग्गोचर होने लगता है। जैसे शरीर में कर्ण, नासिका आदि अन्य अंगों के अविकल विद्यमान रहने पर भी नेत्र के न रहने पर व्यर्थता प्रतीत होती है, व्यक्ति कुछ भी करने में सर्वथा असमर्थ हो जाता है, वैसे ही अन्य शास्त्रों के रहने पर भी नेत्ररूपी चक्षु से हीन होने पर अर्थात् ज्योतिषशास्त्र के बिना वेद की अपूर्णता ही रहती है। इसीलिए ज्योतिषशास्त्र की मुख्यता है।
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