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Chandogya Upanishad (छान्दोग्योपनिषद्)

160.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 29th edition
ISBN -
Pages 928
Cover Hard Cover
Size 14 x 3 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0012
Other Code - 582

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Description

छान्दोग्योपनिषद् (Chandogya Upanishad) छान्दोग्योपनिषद् सामवेदीय तलवकार ब्राह्मण के अन्तर्गत है। केनोपनिषद् भी तलवकार शाखा की ही है। इसलिये इन दोनों का एक ही शान्ति पाठ है। यह उपनिषद् बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसकी वर्णन शैली अत्यन्त क्रमबद्ध और युक्ति युक्त है। इसमें तत्त्व ज्ञान और तदुपयोगी कर्म तथा उपासनाओं का बड़ा विशद और विस्तृत वर्णन है। यद्यपि आज कल औपनिषद कर्म और उपासना का प्रायः सर्वथा लोप हो जाने के कारण उनके स्वरूप और रहस्य का यथावत् ज्ञान इने-गिने प्रकाण्ड पण्डित और विचार कों को ही है, तथापि इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके मूल में जो भाव और उद्देश्य निहित है उसीके आधार पर उनसे परवर्ती स्मार्त कर्म एवं पौराणिक और तान्त्रिक उपासनाओं का आविर्भाव हुआ है।

अद्वैत वेदान्त की प्रक्रिया के अनुसार जीव अविद्याकी तीन शक्तियों से आवृत है, उन्हें मल, विक्षेप और आवरण कहते हैं। इनमें मल अर्थात् अन्तः- करण के मलिन संस्कार जनित दोषों की निवृत्ति निष्काम कर्म से होती है, विक्षेप अर्थात् चित्त चाञ्चल्य का नाश उपासना से होता है और आवरण अर्थात् स्वरूप विस्मृति या अज्ञान का नाश ज्ञान से होता है। इस प्रकार चित्त के इन त्रिविध दोषों के लिये ये अलग-अलग तीन ओषधियाँ हैं। इन तीनों के द्वारा तीन ही प्रकार की गतियाँ होती हैं। सकाम कर्मी लोग धूम मार्ग से स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होकर पुण्य क्षीण होनेपर पुनः जन्म लेते हैं। निष्काम कर्मी और उपासक अर्चिरादि मार्ग से अपने उपास्य देव के लोकमें जाकर अपने अधिकारानुसार सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य या सायुज्य मुक्ति प्राप्त करते हैं। इन दोनों गतियों का इस उपनिष द्के पाँचवें अध्यायमें विशदरूपसे वर्णन किया गया है। इन दोनोंसे अलग जो तत्त्व ज्ञानी होते हैं उनके प्राणों का उत्क्रमण (लोकान्तर में गमन) नहीं होता; उनके शरीर यहीं अपने-अपने तत्त्वों में लीन हो जाते हैं और उन्हें यहाँ ही कैवल्य पद प्राप्त होता है।

 

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