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Charak Samhita Vol. 1 (चरक संहिता प्रथम भाग सूत्र-निदान-विमान-शारीर-इन्द्रियस्थान)

Original price was: ₹725.00.Current price is: ₹616.00.

Author Dr. Bramhanand Tripathi
Publisher Chaukhamba Surbharti Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2024
ISBN 978-93-81484-75-3
Pages 894
Cover Paper Back
Size 18 x 4 x 24 (l x w x h)
Weight
Item Code SUR0021
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Description

चरक संहिता प्रथम भाग (Charak Samhita Vol. 1) चरक शब्द अथवा नाम के सम्बन्ध में जितनी भी साधिकार कल्पनायें हो सकती हैं, उनका सर्वेक्षण नेपालराजगुरु पण्डित हेमराज शर्मा ने इस प्रकार काश्यपसंहिता के उपोद्घात में किया है, जिसको यहाँ साभार उद्धृत किया जा रहा है। गोत्र अथवा शाखा नाम से भी चरक शब्द की प्रसिद्धि हो सकती है। अथवा चरक नाम संकेत के लिये रूढ़ हो। या पश्चिम प्रदेश में नागजाति का इतिहास उपलब्ध होता है, हो सकता है भावप्रकाश में कथित रीति के अनुसार शेषावतार चरक को माना हो? बृहज्जातक के व्याख्याकार रुद्र के मतानुसार यह वैद्य-विद्या का विशेष विद्वान् था। भिक्षावृत्ति द्वारा अपनी जीविका का निर्वाह करता हुआ गाँव-गाँव में घूमकर वैद्य-विद्या का उपदेश देकर और रोगियों की चिकित्सा द्वारा लोकोपकार करता था। इसलिये घूमने वाले भिक्षु रूप अर्थ का सहारा लेकर ही इसकी चरक नाम से प्रसिद्धि हुई हो।

आचार्य वराहमिहिर ने प्रवृज्यायोगवर्णन प्रसंग में ‘शाक्या जीविकभिक्षु वृद्ध-चरका निर्ग्रन्थवन्याशनाः’ इस प्रकार चरक शब्द का उल्लेख किया है। भट्टोत्पल ने ‘चरकश्चक्रधरः’ और उपर्युक्त रुद्र ने ‘चरका योगाभ्यासकुशला मुद्राधारिणश्चिकित्सानिपुणाः पाखण्डभेदाः’ इस प्रकार व्याख्यान किया है। अतः चरक शब्द के विविध प्रयोग यत्र-तत्र सुलभ रहे हैं, किन्तु हमें जो चरक अभीष्ट है, वह है अग्निवेशतन्त्र का प्रतिसंस्कर्ता। सम्प्रति उपलब्ध चरकसंहिता महर्षि चरक द्वारा प्रतिसंस्कृत कृति है, किन्तु इसमें अग्निवेश और दृढबल का महत्त्वपूर्ण एवं अविस्मरणीय योगदान रहा है। इस समय बुद्ध का आविर्भाव हो चुका था, परन्तु चरक इससे पूर्णतः प्रभावित नहीं थे। यद्यपि चरक में कहीं-कहीं बौद्ध-दर्शन प्रतीक रूप में दृष्टिगोचर होता है तथापि उसमें देवता, गो, ब्राह्मण, आचार्य, गुरु तथा वृद्धजनों की पूजा का विधान विविध प्रसंगों में प्राप्त होता है।’ इसमें बौद्ध-सम्प्रदाय में प्रचलित देवी, देवताओं को उद्धृत नहीं किया गया है। चरक ने पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, विष्णु, प्रजापति, कार्तिकेय, शिव, मातृगण, गङ्गा आदि की पूजा, वन्दना को अपने ग्रन्थ में सादर स्थान दिया है। ज्वर शान्ति के लिये शिवपूजन का अन्य चिकित्साओं के साथ निर्देश किया गया है’। चरकसंहिता में दिये गये सवृत्तों का अपने में एक विशेष महत्त्व है। इनके आधार प्राचीन धर्मसूत्र हैं। चरक ने धन्वन्तरि को देवत्व का स्वरूप प्रदान किया है।

चरकसंहिता का प्राशस्त्य – आज आयुर्वेद की जितनी भी संहिताएँ पूर्ण अथवा अपूर्ण उपलब्ध हैं उन सब में कायचिकित्सा के क्षेत्र में चरकसंहिता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि चरक के सम्बन्ध में समसामयिक तथा परवर्ती सभी आचार्यों की धारणा है कि चिकित्सा-क्षेत्र में चरकसंहिता का स्थान सर्वोपरि है।

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