Chitragupta Vrat Katha (चित्रगुप्त यमद्वितीया व्रत कथा) – 355
₹25.00
Author | Dwarika Prashad Agrawal |
Publisher | Rupesh Thakur Prasad Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2011 |
ISBN | 355-542-2392549 |
Pages | 16 |
Cover | Paper Back |
Size | 22 x 0.5 x 13 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0023 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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चित्रगुप्त यमद्वितीया व्रत कथा (Chitragupta Vrat Katha) भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कतम, दवात और जल हे। कायस्थ कुल के अधिष्ठाता श्री चित्रगुप्त जी महाराज की लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित कर श्रद्धापूर्वक फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं विविध प्रकार के पकवान, मिष्ठान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा की जाती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति अपने समस्त अपराधों से निवृत्ति प्राप्त कर मृत्यु उपरान्त सदूति का पात्र बनता है।
चित्रगुप्त पूजा-व्रत कथा – सौराष्ट्र में एक राजा हुए जिनका नाम सौदास था। पुण्य कर्म से विरक्त अधर्मी और पाप कर्म करने वाले राजा ने कभी कोई पुण्य कर्म नहीं किया था एक बार शिकार खेलते समय जंगल में भटक जाने पर राजा को वहाँ चित्रगुप्त पूजा में तीन एक ब्राह्मण दिखा राजा ने उत्सुकतावश ब्राह्मण के समीप जाकर पूछा कि आप यहाँ किनकी पूजा कर रहे हैं। ब्राह्मण ने कहा- “आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है में प्रतिवर्ष इस दिन कायस्थ कुल के अधिष्ठाता श्री चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा करता हूँ। जो व्यक्ति इनकी भक्तिपूर्वक आज की तिथि में उपासना करते हैं अवश्य ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे नर्क की यातनाओं के भागी नहीं बनते हैं।
यह सुनकर पापी राजा ने तब पूजा का विधान पूछकर वहीं चित्रगुप्त जी की बड़े ही भक्ति भावना से पूजा की काल की गति से एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने आ गये। दूत राजा की आत्मा को जंजीरों में बाँधकर घसीटते हुए ले गये लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचा तब चित्रगुप्तजी ने राजा के कर्मों की पुस्तिका खोली और कहा कि “हे यमराज। वैसे तो यह राजा बड़ा ही पापी है इसने सदा पाप-कर्म ही किए हैं। परंतु इसने कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को बड़े ही भक्तिभाव से मेरा व्रत-पूजन किया है, अतः मेरे आशीर्वाद के फलस्वरूप इसके पाप क्षमा योग्य हैं और अब इसे धर्मानुसार नर्क नहीं भेजा जा सकता। इस प्रकार राजा को नर्क से मुक्ति मिल गयी और वे स्वर्ग के रास्ते अग्रसर हुये।
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