Dharma Vichar (धर्म विचार)
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Author | Swami Sadanand Saraswati |
Publisher | Sri Vedanti Swami, Karpatradham, Kedarghat |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2005 |
ISBN | - |
Pages | 102 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 1 x 18 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KJM0005 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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धर्म विचार (Dharma Vichar) धर्म तो संसारप्रिय वस्तु है, आज भी हम किसी मनुष्य से कह दें कि तुम बड़े धार्मिक हो-इन अक्षरों को सुनते ही वह फूल कर कुप्पा हो जायेगा और कह उठेगा कि आपके चरणों की कृपा से। यदि हम यह कह दें कि तुम बड़े अधर्मी हो- इसके सुनते ही त्योरी चढ़ जायेगी, लाल- लाल आंखें हो जावेंगी, कोई आश्चर्य नहीं है यह कह उठे कि आप और आपके बाप तथा आपके दादा ऐसे ही होंगे।
प्राचीनकाल के नास्तिकों ने ईश्वर, जीव, पुनर्जन्म का खूब खण्डन किया किन्तु धर्म के आगे उन्होंने भी सिर झुका दिया। जिस समय धर्म पर आपत्ति आती है वह वैकुंठ में रहने वाला, एक वैकुंठ क्या चाहे वह वैकुंठ में रहता हो और चाहे गोलोक में, चाहे सातवें आसमान पर हो, चाहे सर्वव्यापक हो किन्तु धर्म की रक्षा के लिये उसको फौरन कूद कर निराकार से साकार बनना पड़ता है। इस घटना से कौन कह सकता है कि ईश्वर को धर्म प्यारा नहीं।
संसार में आज तक जितनी शान्ति और उन्नति दिखलाई देती है यह धार्मिक पुरुषों के आचरण का फल है। जो लोग धर्म की व्युत्पत्ति और धर्म शब्द का अर्थ नहीं जानते उन लोगों का कथन है कि धर्म तरक्की में रोड़े अटकाता है। जिन लोगों ने ‘धर्म’ इन अढ़ाई अक्षर के शब्द ‘धर्म’ के अर्थ को समझा है उन लोगों का कथन यह है कि धर्म के बिना उन्नति तो कोई क्या करेगा। अस्तित्व ही नहीं रख सकता। हमको आवश्यकता पड़ी है कि इस बात को पुष्ट करने के लिये हम धर्म और धर्म के लक्षण को श्रोताओं के कान में डाल दें।
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