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Gaya Shraddha Paddhati (गयाश्राद्धपद्धति)

50.00

Author Pt. Ram Krishna Ji Shastri
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 13th edition
ISBN -
Pages 246
Cover Paper Back
Size 21 x 1 x 14 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0020
Other Code - 1809

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Description

गयाश्राद्धपद्धति (Gaya Shraddha Paddhati) पिण्ड दान तथा श्राद्धादि के लिये तीर्थों में गया धाम का विशेष महत्त्व है। गया की प्रसिद्धि पितृ तीर्थ के रूप में सर्व विश्रुत है। श्रद्धालु जन अन्य तीर्थों की यात्रा स्नान-दान, देवदर्शन, पुण्यार्जन आदि की दृष्टिसे भी करते हैं, किंतु गया जी में तो विशेष रूप से श्राद्धादि कर्म सम्पन्न करने के लिये ही प्रायः यात्री जाते हैं। शास्त्रों ने यह बताया है कि यहाँ पितर नित्य निवास करते हैं और यह तोर्थ पितरों को अत्यन्त प्रिय है-‘पितृणां चातिवल्लभम्।’ (कूर्मपु० उ०वि० ३४।७)

पितृगण कहते हैं कि जो पुत्र गया यात्रा करेगा, वह हम सब को इस दुःख संसार से तार देगा। इतना ही नहीं, इस तीर्थ में अपने पैरों से भी जल का स्पर्श कर पुत्र हमें क्या नहीं दे देगा- ‘गयां यास्यति यः पुत्रः स नस्त्राता भविष्यति। पद्भ्यामपि जलं स्पृष्ट्वा सोऽस्मभ्यं किं न दास्यति ॥’ (वायुपु० १०५।९)

मनुष्य को बहुत-से पुत्रों की इसीलिये कामना करनी चाहिये कि उनमें से कोई एक भी गया हो आये अथवा अश्वमेधयज्ञ करे अथवा पितरों की सद्गति के लिये नील वृषभ का उत्सर्ग करे- एष्टव्याः बहवः पुत्रा योकोऽपि गयां व्रजेत्। यजेत वाश्वमेधेन नीलं वा वृषमुत्सृजेत् ॥ (वायुपु० १०५।१०, पद्मपु० स्वर्गखण्ड ३८।१७, वाल्मीकीय रामायण २।१०७।१३)

यहाँ तक कहा गया है कि श्राद्ध करने की दृष्टि से पुत्र को गया में आया देखकर पितृगण अत्यन्त प्रसन्न होकर उत्सव मनाते हैं-‘गयाप्राप्तं सुतं दृष्ट्वा पितॄणामुत्सवो भवेत्।’ (वायुपु० १०५।९)

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