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Geetaji : Gandhiji Ka Geeta Shikshan (गीताजी : गांधीजी का गीता-शिक्षण)

150.00

Author -
Publisher Sarva Sewa Sangh Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 1st edition
ISBN 978-93-83982-8
Pages 344
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SSSP0053
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Description

(Geetaji Gandhiji Ka Geeta Shikshan) श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में गांधीजी का कहना है कि “यह एक ऐसी पुस्तक है, जिसे सभी धर्मावलम्बी पढ़ सकते हैं। इसमें कोई भी साम्प्रदायिक आग्रह नहीं है। इसमें शुद्ध नीति के अतिरिक्त अन्य बातों का निरूपण नहीं है।”एक दृष्टि से देखें तो प्रस्तुत ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता पर गांधीजी का उद्बोधन भाष्य है। किन्तु अन्य भाष्यों और इसमें दो बड़े अन्तर हैं। एक गांधीजी ने किसी प्रकार का खण्डन-मण्डन नहीं किया है; दो, ‘गीताजी’ के प्रति अगाध श्रद्धा होते हुए भी गांधीजी की अपनी दृष्टि स्वतंत्र बनी रहती है। जहाँ वे ‘गीताजी’ को बड़े-से-बड़ा मानसिक पाथेय मानते हैं, वहीं वे यह भी स्पष्ट करते चलते हैं कि “महाभारत अपूर्व ग्रंथ है और इसमें भी गीता विशेष रूप से। इसमें स्थूल युद्ध के वर्णन के निमित्त से सूक्ष्म युद्ध का दर्शन कराया गया है।”

19 नवम्बर, 1926 को लिखे एक पत्र में गांधीजी ने अपनी उद्भावना को और भी अधिक स्पष्ट किया है : “… मैं राम और कृष्ण को वैसे ऐतिहासिक पात्र नहीं मानता, जैसा कि वे पुस्तकों में वर्णित हैं। रावण हमारी वासनाओं का, और कौरव हमारे भीतर के दोषों का प्रतिनिधित्व करते हैं। रामायण और महाभारत में वर्णित हर चीज को मैं सत्य नहीं मानता।”प्रत्येक मौलिक दृष्टि स्वतंत्र ही रहती है, अनुगामिनी हो नहीं पाती। किन्तु अनुगमन से मुक्त भी श्रद्धा हो सकती है, जो कहीं अधिक बलवती होती है।श्रीमद्भगवद्गीता पर सत्याग्रह आश्रम, अहमदाबाद की प्रातःकालीन प्रार्थना सभा में गांधीजी ने 24 फरवरी, 1926 से 27 नवम्बर, 1926 तक प्रवचन दिये थे। ये प्रवचन महादेवभाई देसाई और एक अन्य आश्रमवासी पुंजाभाई पारीख द्वारा सम्पादित किये गये और इन्हें ‘गांधीजी नं गीता-शिक्षण’ नाम से गुजराती में प्रकाशित किया गया था। इसका हिन्दी रूपान्तरण सर्व सेवा संघ प्रकाशित कर रहा है। इसमें सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय की मदद ली गयी है। भाषा-पुनरावलोकन शक्ति कुमार ने किया है। सम्बद्ध अनुवादकों एवं सम्पादकों के हम हृदय से आभारी हैं।

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