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Gupta Shuddhi Pradarshanam (गुप्ताशुध्दिप्रदर्शनम्)

Original price was: ₹70.00.Current price is: ₹56.00.

Author Acharya Kumar Shubham
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2021
ISBN 81-87415-32-0
Pages 136
Cover Paper Back
Size 12 x 2 x 19 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0100
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Description

गुप्ताशुध्दिप्रदर्शनम् (Gupta Shuddhi Pradarshanam) किसी भी व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की आध्यात्मिक, आधिभौतिक, राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यताओं की अभिव्यञ्जना का प्रमुख साधन साहित्य ही होता है। अत एव साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। समाज या राष्ट्र की उन्नति-अवनति, समृद्धि असमृद्धि, उत्कर्ष-अपकर्ष, इत्यादि सब का हेतु साहित्य ही होता है, सब साहित्य पर ही निर्भर करता है। विश्व के समस्त साहित्य में संस्कृत-साहित्य अपना अन्यतम एवं प्राचीनतम स्थान रखता है। वैदिक काल से लेकर अद्यावधि पर्यन्त संस्कृत साहित्य की सुधावर्षिणी मधु-धारा निरन्तर, निर्बाध गति से प्रवाहित होती रही है। इस धारा के कवियों ने सदैव अपने रचनाकुसुमों से भारतीय समाज की प्रजा एवं प्रज्ञा को आह्लादित किया है तथा भारत के गौरव को सम्पूर्ण विश्व के मानसपटल पर प्रतिस्थापित किया है। संस्कृत-साहित्य कभी भौतिक सुख-सुविधाओं का अनुचर नहीं रहा। जीवन में शाश्वत आनन्द को प्राप्त करते हुये ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ को अभिव्यक्ति देना ही इसका परम लक्ष्य रहा है। इसका कवि-कुटुम्ब सदा मानवीय मूल्यों एवं जीवन के नूतन उत्कर्षों के अन्वेषण में संलग्न रहा है।

वेद, संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् आदि वैदिक साहित्य से लेकर रामायण, महाभारत आदि समस्त लौकिक साहित्य तक सम्पूर्ण संस्कृत-वाड्मय भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अजस्र स्रोत है। भारतीय संस्कृति का प्राणतत्व है। भारत की गरिमा और भारतीयता की पहचान है। समूचे विश्व की चेतना व संवेदना को समवेत स्वर प्रदान करनेवाली मुखर ध्वनि है, और उस ध्वनि की प्रतिध्वनि को बिना संस्कृत भाषा के बोध के सुन पाना, समझ पाना सम्भव नहीं है। अथवा यूँ कहे कि संस्कृतभाषा के बोध के बिना माँ सरस्वती को ही समझ पाना सम्भव नहीं है तो कुछ अतिशयोक्ति न होगी, और यही कारण है कि इसे ‘देवभाषा’ की संज्ञा दी गई। वैदिक कालसे अपने गन्तव्य को चली यह भाषा अगणित विघ्न-बाधाओं एवं विपदाओ की लहरों के कठोर थपेड़ों को सहते हुये भी न केवल अक्षुण्ण रही है अपितु भास, कालिदास, भवभूति, माघ व बाणभट्ट प्रभृति अपने प्रिय पुत्रों से सदैव सेवित, पूजित और सम्मानित भी होती रही है।

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