Hindi Nalopakhyan (हिन्दी नलोपाख्यान)
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Author | Shree Kashinath Dwivedi |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 1969 |
ISBN | - |
Pages | 192 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0545 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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हिन्दी नलोपाख्यान (Hindi Nalopakhyan) पुस्तक संस्कृत का एक अनमोल ग्रन्थ है। जिसके संपादक एवं हिंदी व्याख्याकार श्री काशीनाथ द्विवेदी जी है। यह पुस्तक नालोपख्यानम संस्कृत टीका तथा सान्वय ‘प्रकाश’ हिन्दी व्याख्यापेतः विरचित हिंदी व्याख्या सहित है। इस पुस्तक में कुल १९६ पृष्ठ है, जो पेपरबैक संस्करण में उपलब्ध है। वर्त्तमान में पुस्तक का द्वितीय संस्करण उपलब्ध है जो २००५ में प्रकाशित है। यह पुस्तक चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस द्वारा प्रकाशित की गई है।
नलोपाख्यान की कथावस्तु महाभारत भारतीय ज्ञान-विज्ञान का विश्वकोश है। यद्यपि भारतीय परम्परा महाभारत को सक्रिष्ट महाकाव्य मानती रही है, किन्तु महानारत का फलक इतना विशाल है कि उसमें सैकड़ों महाकाव्य के कथानक अनुस्यूत दिखाई पड़ते हैं। विभिन्न उपाख्यानों में विपुलकाय महाकाव्यों की रचना के सूत्र विद्यमान है तथा भारतीय भाषाएं अपने उपजीव्य इस सांस्कृतिक विश्वकोश से सर्वदा आप्यापित होती रही है। यहाँ हमारा उद्देश्य नलोपाख्यान की कया का सार संक्षेप प्रस्तुत करना मात्र है, जिससे हम कया के विम्यास को दृष्टि से इन तपाख्यान का पर्यवेक्षण कर सहें।
नलोपाख्यान, रामोपाख्यान, मत्स्यो पारुथान, उर्वशी उपाख्यान, शिवि-उपाख्यान इश्यादि प्रमुख महाभारतीय उपा ख्यानों में सुश्लिष्टता को दृष्टि से सर्वोतम है। इस कथा को सन्धियों एवं इसके विन्यास का कौशल इम तब तक परख नहीं सकते जब तक हम उसका एकत्र सूत्ररूपेण उल्लेख नहीं करते। उपाख्यानों की स्वतंत्र सत्ता है, किन्तु ये महा- भारत की मूल कथा से बड़ी कुशलता से जुड़े हुए है। इन उपाख्यानों को उड़ा देने से सम्भवतः महाभारत की मूल कथा अविच्छिन्न एवं अधिक वेगवती हो सकती है, किन्तु महाभारत के शिल्र में जो उदात्त सैभव है यद कम हो जयेगा।
ऐसा प्रतीत होता है कि महाभारत के बरणों में नतमस्तक विद्वान् पाठक कभी हिमालय के अचंकष शिखरों के समक्ष अपनी लघुता के बोध से संकुचित हो जाता है तो कभी क्षितिज को छूने बाली समुह की लहरों एवं विशाल जलराशि के समक्ष अपनी विपक्षता के अनुभव से उदास। कभी बह जीवन के विविध आरोह एवं अवरोह में छलक कर बहती हुई विवेक गंगा के तट पर भी पहुँच जाता है और एक अभूतपूर्व अपरिशान्ति का अनुभव लेकर लौटता है। महाभारत का सौन्दर्य हिमालय की ऊंचाई एवं समुद्र की गहराई का सौन्दर्य है, जिसमें अनेक कथायें सुस्वादुपयस्विनी धारा की तरह आकर मिलती हैं।
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