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Hindi Patanjal Yogadarshan (हिंदी पातंजल योगदर्शन)

242.00

Author Dr. Ramashankar Tripathi
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 6th edition, 2021
ISBN 81-218-0186-9
Pages 510
Cover Paper Back
Size 14 x 3 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0014
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Description

हिंदी पातंजल योगदर्शन (Hindi Patanjal Yogadarshan) “पातञ्जल-योग-दर्शन” का यह नवीन संस्करण सरस्वती के सेवकों की सेवा में प्रस्तुत होने जा रहा है। ‘छात्रों को अधिक-से-अधिक सहायता पहुंचाई जा सके’ इस बात को ध्यान में रखते हुए यह संस्करण तैयार किया गया है। कोई भी व्यक्ति इस संस्करण के माध्यम से, बिना किसी को सहायता लिये हुए भी, योग विद्या के पस्माचार्य महर्षि पतञ्जलि के गंभीर भावों तथा व्यास माध्य के सुन्दर अभिप्रायों की तलहूदी तक अनायास पहुँच सकता है।

अध्यापकों, जालोचकों तथा नई एवं पुरानी विचारधाराओं के लिये भी इस संस्करण का उतना हो महत्व हो, जितना कि छात्रों के लिये – एतदचं भी प्रयास किया गया है। प्रारम्भ में अनुसन्धानात्मक भूमिका के साथ इस संस्करण को यथास्थान अन्वय, शब्दार्थ, अर्थ, व्याख्या तथा टिप्पणी मादि से सज्जित करने का भरपूर प्रयास किया गया है। उद्देश्य में कहाँ तक सफलता मिली है इसका मूल्याङ्कन सहृदय ममंज्ञों के ऊपर है। संक्षेप में यह प्रयास किया गया है कि यह संस्करण ग्रन्थ के अर्थ एवं भाव को स्वच्छ दर्पण की भांति प्रतिबिम्बित कर पाठकों को नम्र अपेक्षित सेवा कर सके ।

किसी दार्शनिक आचार्य के भावों को सरल शब्दों में पूर्णरूप से अभिव्यक्त करने में जो कठिनाइयाँ होती हैं, उन्हें कोई अनुभवी विद्वान् ही जान सकता है। इस प्रकार के कार्य के लिये सारस्वत साधना के साथ ही बाह्य सुविधाओं का, निश्चिन्तताबों का, होना भी नितान्त अपेक्षित है। अन्यया व्यक्ति को महती कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मेरे लिये ये कठिनाइयाँ तो बोर बढ़ जाती है। यतः मैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का वेतन भोगी सेवक हूँ, बपने परिवार का अभिभावक हूँ, बालक बालकृष्ण, आनन्दकृष्ण, श्रीकृष्ण एवं राधाकृष्ण का सम्मानित शिक्षक है।

अपनी आयु के प्रायः सात वर्ष व्यतीत करने वाले बालक गोपालकृष्ण का घातृकर्मसहायक अच च क्रीडा सहचर है, घर का सार्वकालिक अवैतनिक सेवक हूँ, कहाँ तक कहूँ? बस यही समझ लिया जाय कि मैं एक गृहस्थ हूँ। अतः इस प्रकार के व्यक्ति को वैचारिक मन्थन में कितनी कठिनाइयाँ होती है, इसे तो कोई गृहस्य लेखक या विचारक ही समझ सकता है। फिर इधर कुछ महीनों से तो मकान मालिक की बन्धी नादिरशाही तथा उनके तलच‌ट्टे पुजारी को कालनेमि जैसी कृतियों ने तो मानों बाधाबों का पहाड़ ही लाकर सामने खड़ा कर दिया है।

फिर भी इस कार्य को मैंने पूर्ण किया है। एतदर्थ ईश्वरानुग्रह एवं विद्वच्चरणों के आशीष का विशेष आभार मानता है। ‘पातञ्जलयोग दर्शन’ के इस संस्करण को वर्तमान रूप देने में पूज्य वाचस्पति मिश्र की ‘तत्त्ववैशारदी’, विज्ञानभिक्षु के ‘योगवातिक’, ‘भोजवृत्ति’ तथा स्वामी श्रीब्रह्मलीनमुनि की हिन्दी व्याख्या से विशेष सहायता ली गई है।

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