Ishadi Nau Upanishad (ईशादि नौ उपनिषद्)
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Author | Hari Krishna Das Goyandaka |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 42nd edition |
ISBN | - |
Pages | 543 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 3 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0117 |
Other | Code - 66 |
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ईशादि नौ उपनिषद् (Ishadi Nau Upanishad) उपनिषदों में ईश आदि ग्यारह उपनिषद् मुख्य माने जाते हैं। उनमें बृहदारण्यक और छान्दोग्य – इन दो उपनिषदों का कलेवर बहुत बड़ा है और उनमें विषय भी अत्यन्त कठिन हैं – इस कारण उन विषयों का समझना समझाना मुझ जैसे अल्पज्ञ मनुष्य की योग्यता के बाहर की बात है, यह सोचकर उन दोनों को छोड़कर शेष नौ उपनिषदोंपर यह व्याख्या लिखी गयी।
इन नौ उपनिषदों में से पहला ईशावास्योपनिषद् तो शुक्ल-यजुर्वेद का चालीसवाँ अध्याय है एवं अन्य आठ उपनिषद् आरण्यक और ब्राह्मण ग्रन्थों के भाग हैं। इन सब में परब्रह्म परमेश्वर के निर्गुण और सगुण स्वरूप का तत्त्व नाना प्रकार से समझाया गया है। वेदों का अन्तिम भाग होने के कारण इन को वेदान्त के नाम से भी पुकारा जाता है। इन उपनिषदों पर प्रधान-प्रधान सम्प्रदायों के पूज्यपाद आचार्यों ने अपने-अपने मत के अनुसार भाष्य लिखे हैं तथा संस्कृत और हिंदी भाषा में भी महानुभाव पण्डितों ने बहुत-सी टीकाएँ लिखी हैं। एवं संस्कृत भाष्य और टीकाओं के हिंदी-भाषा में अनुवाद भी प्रकाशित हो चुके हैं। इस परिस्थिति में मुझ जैसे साधारण मनुष्य के लिये इस पर व्याख्या लिखना कोई आवश्यक कार्य नहीं था। परंतु जब ‘कल्याण’ के विशेषाङ्क- ‘उपनिषदङ्क’ के निकाले जाने की बात स्थिर हुई, उस समय पूज्य जनों ने यह कार्य भार मुझे सौंप दिया।
अतएव उनकी आज्ञा के पालन के लिये और अपने आध्यात्मिक विचारों की उन्नति के लिये मैंने अपनी समझके अनुसार यह व्याख्या लिखकर ‘उपनिषदङ्क’ में प्रकाशित करवायी थी। अब कुछ मित्रों का आग्रह होने से यथास्थान आवश्यक संशोधन करके इसे पुस्तकाकार में प्रकाशित किया जाता है। उदार महानुभाव पण्डित और संतजन मेरी इस बाल- चपलता के लिये क्षमा करेंगे।
इस व्याख्या का अधिकांश संशोधन ‘उपनिषदङ्क’ की छपाई के समय पूज्यपाद भाईजी, श्रीजयदयालजी और स्वामीजी श्रीरामसुख दास जी की सम्मति से किया गया था। व्याकरण सम्मत अर्थ और हिंदी भाषा के संशोधन में पण्डित श्रीराम नारायण दत्तजी शास्त्री ने भी पर्याप्त सहयोग दिया था। इसके लिये मैं आप लोगों का आभारी हूँ।
ईशादि नौ उपनिषद्उ क्त टीका में पहले अन्वयपूर्वक शब्दार्थ लिखा गया है और उसके बाद व्याख्या में प्रत्येक मन्त्र का भाव सरल भाषा में समझाकर लिखने की चेष्टा की गयी है। इससे जो मूल-ग्रन्थ के साथ शब्दार्थ मिलाकर अर्थ समझना पसंद करते हैं और दूसरे जो संस्कृत-भाषा का ज्ञान नहीं रखते, ऐसे दोनों प्रकार के ही पाठकों को उपनिषदों का भाव समझने में सुविधा होगी, ऐसी आशा की जाती है। इसके साथ प्रत्येक उपनिषद्द्वी अलग-अलग विषय-सूची भी सम्मिलित की गयी है, इससे प्रत्येक विषय को खोज निकालने में पाठकों को सुविधा मिलेगी।
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