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Jatak Tattvam (जातकतत्त्वम)

340.00

Author Pt. Harishankar Pathak
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2022
ISBN 978-93-82443-56-9
Pages 520
Cover Paper Back
Size 14 x 3 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code SUR0013
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Description

जातकतत्त्वम (Jatak Tattvam) आज से लगभग १२५ वर्ष पूर्व विक्रम संवत् १९२८ में रतलाम निवासी पराशर गोत्रीय उदुम्बर कुलोत्पन्न दैवज्ञप्रवर पं० श्री रेवाशङ्कर पाठक के सुपुत्र पं० श्री महादेव। पाठक द्वारा पराशरादि महर्षियों द्वारा प्रणीत अनेक जातक ग्रन्थों के अवगाहन और मन्थन के फलस्वरूप यह ग्रन्थ प्रसूत हुआ और पण्डितजी का नाम तत्कालीन ज्यौतिष जगत् में अत्यन्त आदर और सम्मानपूर्वक लिया जाता था। आप भारतीय त्रिस्कन्ध ज्यौतिष के मर्मज्ञ तो थे ही, साथ ही आप पाश्चात्य फलित ज्यौतिष के भी मर्मज्ञ विद्वान् थे। पत्रीमार्ग तथा वर्षदीपक प्रभृति अनेक ग्रन्थों की आपने रचना की है।

भारतीय जातक ग्रन्थ प्रायः श्लोकबद्ध हैं। फलतः वे सामान्य व्यक्ति के लिए सहज बोधगम्य नहीं हैं। इस ग्रन्थ में पण्डितजी ने उन अनेक जातक ग्रन्थों के सारतत्त्व को सहज बोधगम्य, सुस्पष्ट और अतिसरल भाषा में लघु सूत्रों में पिरोने का सफल एवं स्तुत्य प्रयास किया है। अनेक विशिष्टताओं में से एक इसी ने मुझे इस ग्रन्थ की ओर आकृष्ट किया। पण्डितजी के सुयोग्य पुत्र पं० श्री श्रीनिवास पाठक दैवज्ञ ने विक्रम संवत् १९३७ में भाषानुवाद के साथ इस ग्रन्थ को प्रकाशित किया था। बाद में श्री सुब्रह्मण्य शास्त्री ने आग्ल भाषा में इसका अनुवाद प्रकाशित किया। वर्तमान में इस ग्रन्थ की अन्य किसो प्रामाणिक टीका के अभाव ने इस ग्रन्थ की हिन्दी व्याख्या लिखने की प्रेरणा दी।

यह ग्रन्थ निम्न पाँच खण्डों में विभक्त है-

१. संज्ञातत्त्वम् । २. सूतिकातत्त्वम् । ३. प्रकीर्णतत्त्वम् । ४. स्त्रीजातकतत्त्वम् । ५. दशातत्त्वम् ।

संज्ञातत्त्व में राशियों और ग्रहों से सम्बन्धित जानकारी उनके स्वरूप, स्वभाव, गुण-धर्म, उनके परस्पर सम्बन्ध एवं व्यवहार आदि का सम्यग् विवरण प्रस्तुत है। सूतिकातत्त्व में नवजात शिशु तथा उसके माता-पिता से सम्बन्धित फलों का विवेचन किया गया है। इस प्रकरण में बालारिष्ट, यमल (जुड़वाँ) गर्भ, शिशु के जन्मकाल में माता-पिता की स्थिति आदि विषयों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। प्रकीर्णतत्त्व १३ उपखण्डों में विभक्त है। इन उपखण्डों में प्रत्येक भाव से सम्बन्धित ग्रहयोग फल संगृहीत हैं। इस प्रकरण के अन्तिम तेरहवें विवेक में विभिन्न योगों, उनके फल तथा जन्मकालिक संवत्सर, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र, योगादि के फल, होरा, द्रेष्काणादि षड्‌वर्गज फलों का समावेश किया गया है। उपग्रहों और उनके फलों की चर्चा भी इसी प्रकरण में है। स्त्रीजातकतत्त्व में स्वी के शुभाशुभ लक्षणों, उनके वैधव्य एवं सौभाग्यादि का वर्णन है। अन्तिम दशातत्त्व में ग्रहों की विंशोत्तरी दशा और उनके फल तथा अन्तर्दशाओं के फल दिये गये हैं। ग्रन्थ में वर्णित विषयों से सम्बन्धित समानान्तर मत अन्य जातक ग्रन्थों से टीका में उद्धृत किये गये हैं। साथ ही गुलिक, प्राणपद, कालहोरा, आयुष्य निर्णय आदि दुरूह विषयों के आनयन की विधि सोदाहरण दी गई है। इस प्रकार इस ग्रन्थ को सर्वांग पूर्ण बनाने की चेष्टा की गई है। अपने इस प्रयास में मुझे कहाँ तक सफलता मिली है इसके निर्णायक तो आप ही हैं।

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