Jyotish Aur Vanaspatiya (ज्योतिष और वनस्पतियाँ)
₹100.00
Author | Satya Prakash Dvivedi |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2016 |
ISBN | - |
Pages | 110 |
Cover | Paper Back |
Size | 21 x 0.5 x 13 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0031 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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ज्योतिष और वनस्पतियाँ (Jyotish Aur Vanaspatiya)
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।
सर्वप्रथम मैं यह बताना उचित समझता हूँ कि इस पुस्तक के लिखने का उद्देश्य क्या है? यह संक्षेप में कहना उचित होगा। ज्योतिष शास्त्र वेदांग के एक अंग के रूप में प्रतिष्ठित है जिसे वेदों का नेत्र कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र इस संसार के समस्त ज्ञान की प्रथम आधारशिला है जिसके माध्यम से हमारे महर्षियों ने जगत् के रहस्यों का अन्वेषण किया है। वृक्षों का मूल्यांकन मात्र पर्यावरण दृष्टि से या आहार की दृष्टि से ही किया गया है। जबकि औषधीय एवं आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसकी प्राचीन महत्ता आज भी प्रासंगिक है, परन्तु प्राचीन शास्त्रों या साहित्य में इनका ज्ञान क्रमबद्ध नहीं है, मात्र संकेत रूप से विद्यमान है। इसी प्राचीन ज्ञान को क्रम बद्ध रुप से संक्षेप में संकलन के रुप में लिखने का प्रयास किया गया है।
आधुनिक विज्ञान ने वृक्षों को प्राणियों के समान ही चेतना सम्पन्न सिद्ध किया है, परन्तु हमारे प्राचीन आचार्यों ने वृक्षों में दैवी शक्ति का निवास जानकर ही इनके पाँचों अंगो मूल, शाखा, पत्र, पुष्प और फल को विभिन्न रुपों में इसकी उपयोगिता एवं इनकी महिमा का वर्णन करने के साथ-साथ उपासना भी की है।
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्रस्थः सिद्धानां कपिलो मुनिः ।।
गीता के अध्याय 10 श्लोक 26 में भगवान् श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं कि मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ। जब भगवान् स्वयं वृक्षों में निवास करते हैं तो जगत् की सम्पूर्ण वनस्पतियाँ देवतुल्य पूज्यनीय हैं।
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