Kaal Bhairav Rahasyam (कालभैरवरहस्यम्)
Original price was: ₹200.00.₹170.00Current price is: ₹170.00.
Author | Ashok Kumar Gaud |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakasan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | - |
Pages | 480 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CH0028 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
कालभैरवरहस्यम् (Kaal Bhairav Rahasyam) कालभैरव की उत्पत्ति के विषय में इस प्रकार से वर्णित है- जब चतुर्मुख ब्रह्मा और भगवान् विष्णु का अज्ञान दूर नहीं हुआ, तब इन दोनों देवताओं के बीच में एक विशाल ज्योति प्रगट हुई और उस ज्योतिर्मण्डल के बीच में एक पुरुष का आकार दिखाई दिया। उसे देखते ही सहसा ब्रह्माजी का पाँचवाँ मस्तक अत्यधिक क्रोध से प्रज्ज्वलित हो गया। उस समय ब्रह्माजी अपने मन में सोचने लगे कि यह पुरुष कौन है? उसी क्षण भालनयन, त्रिशूलपाणि, सर्प एवं चन्द्रमा से विभूषित नीले शरीर के उस महापुरुष को उन्होंने देखा। तदुपरान्त हिरण्यगर्भ ने उस पुरुष से कहा कि हे चन्द्रशेखर ! मैं तुमको भलीभाँति से जानता हूँ। पूर्वकाल में तुम्हीं तो मेरे भालस्थल से रुद्र के रूप में उत्पन्न हुए थे। तुम्हारे बहुत अधिक विलाप करने के कारण मैंने तुम्हारा नाम रुद्र रक्खा था। वत्स, अब तुम मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। शिवजी ने पद्मयोनि की इस गर्वपूर्ण वाणी को श्रवण कर क्रोध से एक भैरवाकृति पुरुष को उत्पन्न कर उससे कहा- हे कालभैरव ! तुम इस पंकज-जन्मा ब्रह्मा पर शासन करो। साक्षात् काल के समान होने से तुम्हारा नाम ‘कालराज’ होगा। तुम इस संसार का भरण-पोषण करने में सर्वथा समर्थ होगे, तुमसे काल भी डरेगा। इस कारणवश तुम्हारा नाम इस संसार में ‘कालभैरव’ के नाम से प्रसिद्ध होगा। यह कथा काशीखण्ड के इकतीसवें अध्याय में वर्णित है।
कालभैरव का शरीर विशाल, वर्णनील, मुखारविन्द पर तेज व्याप्त, मस्तक पर स्वर्ण मुकुट, दोनों कानों में दिव्य कुण्डल, माथे पर चन्दन व लाल रंग का टीका, गले में रुद्राक्ष की माला और लाल पुष्पों की माला, तीन नेत्र, प्रसन्न मुखाकृति और बड़ी-बड़ी मूँछें हैं। ये अपने हाथों में आठ आयुधों को धारण किये हुए हैं। इनका वाहन श्वान है। कालभैरव अपने उपासकों को भय-बाधाओं से मुक्त कर उनके कष्टों का हरण कर उन्हें सुख प्रदान करते हैं। हमारे शास्त्रकारों ने इनकी तीन प्रकार से पूजा बताई है।
सात्त्विक पूजा – सात्त्विक पूजा में केवल गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, फल और नारिकेल आदि का ही उपयोग होता है। इसमें मद्य, मांस और पशुबलि प्रदत्त नहीं की जाती।
राजसी पूजा – राजसी पूजा में गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, फल आदि के साथ ही पशुबलि भी प्रदत्त की जाती है और इन्हें पञ्चमकार भी निवेदित किया जाता है। यह पञ्चमकार अत्यन्त रहस्यमय है। इसका पूर्ण विधान उच्चकोटि के साधक ही जानते हैं और उन्हीं में यह अत्यधिक प्रचलित है।
तामसी पूजा – तामसी पूजा में मनुष्य वैदिक और शास्त्रीय विधान का पालन नहीं करते हैं। वे स्वेच्छाचारिता को प्रमुखता देते हुए मद्य-मांस और रक्त को समर्पित करते हैं। तामसी पूजा में बलि और मद्य की विशेषता होती है। यह पूजा साम्प्रदायिक उपासकों के लिए विहित हो सकती है, सबके लिए नहीं।
Reviews
There are no reviews yet.