Kali Tantram Rudra Chandi Tantram (कालीतन्त्रम रूद्रचण्डीतन्त्रम)
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Author | S. N. Khandelwal |
Publisher | Chaukhamba Surbharti Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2020 |
ISBN | 978-93-81484-11-1 |
Pages | 134 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SUR0024 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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कालीतन्त्रम रूद्रचण्डीतन्त्रम (Kali Tantram Rudra Chandi Tantram) कालीतन्त्र की व्याख्या प्रस्तुत करने के पूर्व काली के स्वरूप की गुरुजनों द्वारा कही गई विवेचना को प्रस्तुत करना आवश्यक प्रतीत होता है। देवार्चन के पूर्व अर्चित देवता के स्वरूप-सत्ता की उपलब्धि किये विना अर्चना सम्भव ही नहीं होती। भगवती कालिका का स्वरूप अनन्त रहस्यों से आवृत है। उनकी कृपा से इस सम्बन्ध में जो कुछ अभिज्ञता प्राप्त हो सकी है, उसी के आधार पर यहाँ प्रकाश-प्रक्षेपण किया जा रहा है; साथ ही कौलमार्ग की भी यथासाध्य विवेचना की जा रही है। महाकालसंहिता के मत से आद्या शक्ति ही दक्षिणा काली है। शिवचन्द्र विद्यार्णव कहते हैं कि पुरुष का नाम ‘दक्षिण’ है एवं शक्ति का नाम है ‘वामा’। जब तक यह वाम तथा दक्षिण समान रूप से अवस्थान करते हैं, तब तक संसार बन्धन रहता है। साधना के प्रभाव से यह वामा शक्ति जाग्रत् होकर जब दक्षिण शक्ति पुरुष को विजित कर लेती है और उनके ऊपर आरूढ़ होकर दक्षिणानन्द में निमग्न हो जाती है, तब उनके प्रभाव से दक्षिण तथा वाम-दोनों अंश ही पूर्णत्व की प्राप्ति कर लेते हैं। तभी वे दक्षिणा काली हो जाती हैं। पक्षान्तर से वे दक्षिणामूर्ति भैरव से अराधिता होकर दक्षिणा काली हैं।
ये कृष्णवर्णा है। कामाख्या तन्त्रानुसार वे सदा कृष्णवर्णा हैं, यह आगम का मत है (कामाख्या तन्त्र, नवम पटल)। महानिर्वाणतन्त्र (१३.५-६) का कथन है कि परा शक्ति अरूपा एवं वर्णहीन हैं। जहाँ कोई वर्ण नहीं है (द्वैत नहीं हैं), वहीं है निबिड़ कृष्णवर्ण (परमाद्वैत)। उनकी ज्योति को हमारे चक्षु धारण कर ही नहीं सकते, तभी तो वे निविड़ कृष्णवर्णा प्रतीत होती हैं, लेकिन वास्तव में जानने वालों के लिये वे महाज्योतिः स्वरूपा है। कर्पूरादि स्तोत्र के प्रथम श्लोक की व्याख्या करते हुये विमलानन्द कहते हैं कि वे शुद्ध सत्त्वगुणात्मक घनीभूत तेजोमयी होने के कारण कृष्णवर्णा (नीलवर्णा) हैं। ऋग्वेद (१०.१२९.३) के अनुसार सृष्टि के पूर्व की अवस्था में एकमात्र तम विद्यमान था। वह आदि तम ही काली है। महानिर्वाणतन्त्र में कहते हैं कि सृष्टि के पूर्व तुम वाक्य एवं मन से अतीत तमोरूपा अकेली विद्यमान थी (४.२५.३३); यही स्थिति है काली।
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