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Kama Kunjalata (कामकुञ्जलता)

Original price was: ₹750.00.Current price is: ₹637.00.

Author Dr. Dalveer Singh Chauhan
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2008
ISBN 978-81-7080-286-5
Pages 74
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0282
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Description

कामकुञ्जलता (Kama Kunjalata) कामशास्त्र लेखन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। इसका मूल, सृष्टिकर्ता प्रजापति ब्रह्मा के आदि उपदेश में निहित है। धर्म और अर्थ के उपदेश के साथ इसमें काम का उपदेश भी था, जिसका सार ग्रहण कर आचार्य नन्दीश्वर ने १००० अध्यायों में, चेतकेतु ने ५०० अध्यायों में फिर बाप्रव्य ने १५० अध्यायों में प्रणयन किया था जिसमें सात अधिकरण थे, फिर धीरे-धीरे, जब सब छितरा गये, तब अन्त में आचार्य वात्स्यायन ने सबको सङ्कलित कर सात अध्यायों वाले कामसूत्र की रचना की।

इसके बाद, रतिरहस्य, अनङ्गरङ्ग, कुट्टिनीमतम् आदि अनेकों ग्रन्थों का प्रणयन हुआ, जो सभी प्रकाश में आ चुके हैं। इसके अतिरिक्त अनेकों अन्य दुर्लभ और अभूतपूर्व कामशास्त्रीय तथ्यों से भरे हुए ग्रन्थरत्न पाण्डुलिपि के रूप में संग्रहालयों में पड़े हुये थे, जिनका सम्पादन पण्डित दुण्डिराज शास्त्री ने किया, जो १२ ग्रन्य कामकुञ्जलता के रूप में चौखम्बा संस्कृत सीरीज वाराणी के सौजन्य से प्रकाशित किये गये; जिनमें से पञ्चसायक, नर्मकेलिकौतुक संवाद, रति मञ्जरी और रतिरत्नप्रदीपिका का हिन्दी अनुवाद आदरणीय श्री ब्रजमोहनदास प्रकाशक चौखम्बा संस्कृत सीरीज के सौजन्य से लेखकों द्वारा लोकार्पित किया जा चुका है। शेष आठ ग्रन्थों के अनुवाद का सौभाग्य माननीय दास जी के सौजन्य से मुझे प्राप्त हुआ है, जिनमें से दो ग्रन्थ स्मरदीपिका और रतिकल्लोलिनी का व्याख्योपेत अनुवाद में कर चुका हूँ, जो दोनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अब इस तीसरी पुस्तक ‘पौरूरवसमनसिजसूत्रम्’ का हिन्दी अनुवाद ‘रामा’ व्याख्या सहित लोकार्पित कर रहा हूँ।

‘पौरूरवसमनसिजसूत्रम्’ का अर्थ है- पुरूरवा का कामसूत्र। आज तक वात्स्यायन कामसूत्र का नाम तो सुनते थे, सुनते ही नहीं थे, अपितु यह कामसूत्र भारत में ही नहीं, विश्व में विशेष ख्याति प्राप्त कर चुका है; जबकि यह वात्स्यायन प्रणीत नहीं, अपितु उनके द्वारा प्राचीन कामशास्त्रियों के मतों का सङ्कलन किया गया है। जो भी हो, प्रकाश में आने वाला इसके अलावा अन्य कोई कामशास्त्रीय प्रामाणिक ग्रन्य नहीं है, परन्तु पण्डित दुण्डिराज शास्त्री द्वारा सम्पादित कामकुञ्जलता में एक ऐसा पुष्म अविकसित दशा में है; जो विकसित होकर अपनी सुवास से समस्त लोक को सुवासित कर सकता है। यह अलग बात है कि इसका कलेवर अत्यन्त लघु है। इसमें मात्र ५२ सूत्र है और केवल साम्ययोगिक (सम्भोग) विषय पर ही अपना विचार प्रस्तुत करताहै। इसका कलेवर लघु अवश्य है, परन्तु इसके लघुकाय कलेवर में इतना गृडज्ञान है कि जो अन्यत्र दुर्लभ है। यह राजर्षि पुरूरवा प्रणीत है। अतः इसमें इन्द्रादि देवों को भी छोड़कर आई एक देवाङ्गना उर्वशी को रतिक्रीडा की तकनीकों से वश में करने बाले राजर्षि पुरूरवा के असाधारण विचार है, जो अन्यत्र दुर्लभ है।

कामशास्त्र तो आजकल बहुत लिखे गये हैं; जिनमें प्रायः वात्स्यायन की अनुकृति ही की गयी है तथा स्वयं वात्स्यायन ने भी अन्य कामशास्त्रियों के मत प्रस्तुत किये हैं। अतः सभी कामशास्त्र के वर्ण्य विषय प्रायः समान हैं तथा सभी में प्रायः एक ही प्रकार की सम्भोग तकनीकों का वर्णन किया गया है; परन्तु राजर्षि पुरूरवा का कामसूत्र अपने प्रकार का एक अनूठा कामसूत्र है, जिसमें न किसी का अनुकरण है न किसी का नामोल्लेख ही तथा सम्भोग की तकनीकें तो इतने गूढ़ ज्ञान के साथ प्रस्तुत की हैं कि इनको पढ़कर अमल करने वाला व्यक्ति अवश्य ही अपनी प्राणप्रिया को पूर्वद्रवित कर सम्भोग सन्तुष्टि प्रदान करता हुआ परिवार में कल्याण की गङ्गा बहायेगा, क्योंकि जिस कुल में पत्नी के द्वारा पति और पति के द्वारा पत्नी सन्तुष्ट रहती है, उस कुल में सदैव कल्याण ही होता है- सन्तुष्टो भार्यया भर्त्ता, भर्चा भार्या तथैव च। यस्मिन्त्रेव कुले नित्यं, कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ।।

अपनी कृति को त्रुटिविहीन बनाने में सबका प्रयास होता है, तदपि त्रुटि होना मानव स्वभाव है। अतः विद्वज्जन क्षमा प्रदान करते हुये उचित परामर्श का पात्र बनायेंगे। मैने अपनी इस हिन्दी टीका का नाम अपनी धर्मपत्नी ‘रामवती’ के नाम पर ‘रामा’ रखा है। रामा का अर्थ है- ‘रमन्ते जनाः यस्मिन्त्रिति रामा’ अर्थात् जिसमें लोग रम जायें, उसी अर्थ के आधार पर मेरी यह टीका लोगों को रमा देने वाली है। इसे पढ़कर अवश्य लोग इसमें रम जाये, ऐसी मेरी विद्या की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती से प्रार्थना है तथा उन्हीं को यह मेरी कृति समर्पित है।

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