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Kankal Malini Tantra (कंकाल मालिनी तंत्र)

20.00

Author S.N. Khandelwal
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 1993
ISBN -
Pages 90
Cover Paper Back
Size 12 x 2 x 19 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0108
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Description

कंकाल मालिनी तंत्र (Kankal Malini Tantra) यद्यपि कङ्काल शब्द से अस्थिपंजर का तात्पर्य ध्वनित होता है, तथापि यहाँ उसका अर्थ है मुण्ड-नरमुष्ड ! जिनको ग्रीवा नरमुण्ड माला से सुशोभित हैं, वे है कङ्कालमालिनी । जो मुण्डमाला है, यही है वर्णमाला, अर्थात् जिन्होंने वर्णमालारूपी मातृका की माला को अपनी ग्रीवा में धारण किया है, वे है कङ्कालमालिनी।

इरा तंत्र के प्रथम पटल में वर्णमाला की व्याख्या अंकित है। इस तंत्र के अनुसार अ से अः पर्यन्त रुवर वर्ण सत्त्वमय है। कसे थ पर्यन्त बर्णसमूह को रजोमय तथा द से क्ष पर्यन्त के वर्णसमूह को तमोमय कहा गया है। द्वितीय पटल में मन्त्रार्थ मन्त्रचैतन्य आदि का अंकन है। तृतीय पटल गुरु अर्चना से सम्बद्ध है। इसमें अमित फलप्रदायक रुगु-कवच गुरु तथा गीता का भी समाबंदा है। गुरुतत्व की महनीयता से यह पटछ ओतप्रोत है। चतुर्थ पटल में महाकाली मंत्र एवं उसके माहात्म्य का अंकन है। इसमें व्यक्षर मंत्र भी उपदिष्ट है। साथ हो महाकाली की सम्यक पूजाविधि का भो निर्देश दिया गया है। पंचम पटल महाकाली के अनन्य साधकों के लिये हितकारी है। इसमें पुरश्चरण विधान, प्रातः कृत्य, स्तान, सन्ध्या, तर्पण, गणपति, भैरव, क्षेत्रपाल प्रभृति देवताओं को बलि, भूतशुद्धि, न्यासादि का भो उपदेश दिया गया है। पुरश्चरण विधान का समापन करते हुये डाकिनी-राकिनी आदि देवियों का बीजोद्धार भी इस तंत्र की विशेषता परिचायक है।

यह तंत्र दक्षिणाम्नाय के अन्तर्गत है ? अर्थात् यह शिव के अपोर मुख से अभिनिः श्रित है। अभयाचार तन्त्रमतानुसार दक्षिणाम्नाय से सम्बन्धित हैं- बगला, वशिनी, त्वरिता, धनदा, महिषष्नि, महालक्ष्मी। यह कहा जाता है कि यह तंत्र प्रारम्भ में ५०००० श्लोकों से युक्त था, परन्तु काल के प्रवाह में सुप्त होते-होते जो अवशिष्ट है, उसे ही अनुवाद के साथ पाठकगण के लाभार्थ प्रस्तुत किया जा रहा है।

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