Kashi Kedar Mahatmyam (काशीकेदार महात्म्यम्)
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Author | Pt. Shree Vijyanand Tripathi |
Publisher | Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2008 |
ISBN | 81-85122-40-7 |
Pages | 604 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0359 |
Other | Old & Rare Book |
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काशीकेदार महात्म्यम् (Kashi Kedar Mahatmyam) काशीयात्रा के लिये किसी शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है, दिक्शूलादि दोष भी नहीं हैं, जिस समय काशी के लिये उठ पड़े वही शुभ है। यहाँ मरण में काल का दोष नहीं, उत्तरायण, दक्षिणायन, अथवा रात दिन आदि किसी बात का विचार नहीं, न यहाँ स्थल का दोप है, न दुर्मरण का दोष है, लोगों ने ठीक कहा है कि ‘काशी तीन लोक से न्यारी है।
काशी में क्षण मात्र वास का भी विशेष फल है। काशी के दर्शन का भी फल है। पूर्व जन्म के जितने पातक महापातक हैं और वर्तमान जन्म में काशी से बाहर किये हुए जितने पातक महापातक हैं। वे सब काशी में शरीर छोड़ने से भस्म हो जाते हैं, मृत जीव के ऋण का भी भार अपने ऊपर लेकर विश्वेश्वर उसे उऋण करके आवागमन से रहित कर देते हैं।
काशी में शरीर छोड़नेवाले के श्राद्धादिक की कोई आवश्यकता नहीं है, परन्तु विश्वेश्वर की आज्ञा है कि हमारे क्षेत्र में वैदिक कर्म का लोप न हो, सम्पूर्ण कर्मकाण्ड मेरी प्रीति के लिये किया जाय, इस कारण श्राद्धादि तथा प्रेतक्रिया मृत व्यक्ति के मुक्त होने पर भी अवश्य करनी चाहिये। किसी ब्राह्मण का काशीवास करा देने से भी काशीवास का फल होता है।
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