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Kashyapa Samhita (काश्यपसंहिता)

Original price was: ₹945.00.Current price is: ₹803.00.

Author Pt. Hemraj Sharma
Publisher Chaukhambha Sanskrit Sansthan
Language Sanskrit Hindi Translation
Edition 2024
ISBN 81-86937-67-6
Pages 578
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSS0011
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Description

काश्यपसंहिता (Kashyapa Samhita) काश्यपसंहिता आयुर्वेद का एक अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ है। यह चरक तथा सुश्रुत का ही समकक्ष माना जाता है। इसकी उपलब्धि नेपाल में अभीतक खण्डितरूप में ही हुई है। कालक्रम से हमारे अनेक प्राचीन आयुर्वेदिक तथा अन्य प्रन्य भी विलुप्त हो चुके हैं। इन विलुप्त अन्यों में से जो अनेक ग्रन्थ समय-समय पर उपलब्ध हुए है उन्हीं में से काश्यपसंहिता भी एक है। यद्यपि यह ग्रन्थ अभी तक पूर्णरूप से नहीं मिला है तथापि जर्जरित एवं खण्डित रूप में उपलब्ध होने पर भी यह हमारे महान् आयुर्वेद कोष की अमूल्य निधि समझी जानी चाहिये तथा समय प्रवाह से भविष्य में इस ग्रन्थ के अवशिष्ट अंशों की उपलब्धि की आशा भी रखनी चाहिये ।

इस अन्य का मुख्य विषय कौमारभृत्य है अर्थात् इसमें बालकों के रोग, उनका पालन-पोषण, स्तन्यशोधन एवं धात्रीचिकित्सा आदि का विशद् वर्णन मिलता है। कौमारभृत्य अष्टाङ्ग आयुर्वेद का एक अविभाज्य अङ्ग है। इसके अभाव में अष्टाङ्ग आयुर्वेद पूर्ण नहीं कहा जा सकता। जिस प्रकार आयुर्वेद के आठ अङ्गों में से इस समय शालाक्य, विष, तथा भूतविद्या आदि केवल नाममात्र को ही अवशिष्ट हैं उसी प्रकार अष्टाङ्ग आयुर्वेद का कौमारभृत्य-सम्बन्धी विश्य भी इस ग्रन्थ के उपलब्ध होने से पूर्वतक केवल नाममात्र को ही था। इस कौमारभृत्य का प्रधान आचार्य जीवक माना जाता है। अभी तक इस जीवक का कोई भी विशेष परिचय हमें उपलब्ध नहीं था। इस ग्रन्थ के उपलब्ध हो जाने से जीवक के विषय में भी हमें अनेक प्रकार का ज्ञान मिल जाता है। इससे उसके पिता, जन्मस्थान एवं आचार्य का परिचय मिलता है। कौमारभृत्य के प्रधान आचार्य जीवक, तथा इस संहिता के विषय में उपोद्धात में विशेष वर्णन किया गया है। इसके विषय में पुनः विशेष कुछ नहीं कहना है। इस ग्रन्थ में बालकों के विषय में अनेक ऐसी बातें दी हुई हैं जो अन्य प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रन्थ में साधारणतया देखने को नहीं मिलती हैं। उदाहरण के लिये बालकों के लेहन, संन्निपात, फक्करोग आदि का इसमें विशेष वर्णन किया गया है।

बालकों के दन्तोत्पत्ति का इतना विशद वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। स्वेदन के प्रकरण में अत्यन्त छोटे बालकों के लिये अन्य स्वेदों के साथ विशेषरूप से हस्तस्वेद का विधान दिया गया है। हस्तस्वेद से अभिप्राय हाथों को गर्म करके उनके द्वारा स्वेदन देने से हैं। छोटे बालक अत्यन्त नाजुक होते हैं। थोड़ी-सी भी अधिक गरमी से बालकों के उष्णता के केन्द्र विचलित हो जाते हैं इस लिये उन्हें स्वेदन अत्यन्त सावधानी से देने की आवश्यकता होती है। हस्तस्वेद से यह भय नहीं रहता, इसमें हाथों द्वारा उष्णता का नियन्त्रण सुविधापूर्वक किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य ग्रन्वों में संक्षेप में दिये हुए वेदनाध्याय, लक्षणाध्याय, बालग्रह आदि का इसमें विशद वर्णन किया गया है। रक्तगुल्म तथा गर्भ में प्रायः अम उत्पन्न हो जाता है। इनकी भेदक परीक्षा इस संहिता में अत्यन्त विस्तार से दी गई है। विषम ज्वर के वेगों के विषय में यहां एक बिलकुल नवीन शंका उपस्थित करके उसका युक्तिपूर्वक बड़ा सुन्दर उत्तर दिया गया है। विषमज्वर के अन्येधुष्क, तृतीयक तथा चतुर्थक के समान अन्य भेद क्यों नहीं होते ? अर्थात् जिस प्रकार विषमज्वर प्रतिदिन, तीसरे दिन एवं चौथे दिन होता है उसी प्रकार पांचवें तथा छठे दिन भी इसके वेग क्यों नहीं होते ? इसका उत्तर दिया है कि इस विषमज्वर के आमाशय, छाती, कण्ठ तथा सिर ये चार ही स्थान है। इनके अतिरिक्त इसका कोई स्थान नहीं है। इसलिये अन्य स्थानाभाव से इसके अन्य वेग नहीं होते हैं। इन उपर्युक्त स्थानों में से आमाशय में दोषों के पहुंचने पर ज्वर का वेग होता है।

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