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Khudda Sikkha Mool Sikkha (खुद्दसिक्खा मूलसिक्खा)

51.00

Author Dr. Harprasad Dixit
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit
Edition 1st edition, 2005
ISBN 81-87415-90-8
Pages 90
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0198
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Description

खुद्दसिक्खा मूलसिक्खा (Khudda Sikkha Mool Sikkha) खुद्दसिक्खा एवं मूलसिक्खा ‘विनय’ के ही संक्षिप्त संग्रह है, इन लघु ग्रन्थों का सम्पादन ‘डॉ. एडवर्ड मूलर’ ने रोमन लिपि में किया है, जिसका प्रकाशन सन् १८८३ ई. में ‘पालि टेक्स्ट सोसायटी लन्दन’ द्वारा किया गया है। सम्पादक डॉ. मूलर ने इन दोनों लघुग्रन्थों को परम्पर सहायक मानते हुए एक साथ रोमन लिपि में सम्पादित कर ग्रन्थ परिचय एवं तुलनात्मक सन्दर्भ सूची भी एक साथ सम्पादित किया है। इन लघु ग्रन्थों का रोमन संस्करण से देवनागरी लिपि में सम्पादन मेरे द्वारा किया गया है, तथा बर्मीज संस्करण से मिलान कर पाठ संशोधन भी पाद टिप्पणी में प्रस्तुत किया जा रहा है, जो विशेष रूप से पालि साहित्य के विद्वानों, अध्येताओं एवं शोध छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा।

इन लघु ग्रन्थों के रचनाकार के बारे में जो उल्लेख प्राप्त हुआ है. उसके अनुसार अनुराधपुर के प्रसिद्ध सिंहली विद्वान भिक्षु आचार्य ‘धर्म श्री’ ने विनय सम्बन्धी अट्ठकथा साहित्य का संवर्द्धन करते हुए खुद्दसिक्खा या खुद्दकसिक्खा की रचना की थी। तथा ‘अनुराधपुर’ के ही सिंहली भिक्षु आचार्य ‘महासामी’ ने इसी विषय सम्बन्धी मूलसिक्खा की रचना की थी। भिक्षु धर्मश्री एवं भिक्षु महासामी का समय परम्परागत रूप से चौथी शताब्दी ईस्वी माना जाता है।’ सासनवंस’ एवं गन्धवंस’ में भी खुद्दसिक्खा के रचयिता आचार्य ‘धर्मश्री’ स्थविर का उल्लेख प्राप्त होता है। आनन्द वनरतन एक सिंहली भिक्षु जो राजा ‘विजयबाहु’ तृतीय, (१२३२-३६ ई.) के समकालिक माने जाते हैं, इन्होंने खुद्दसिक्खा (खुद्दकसिक्खा) का सिंहली भाषा में अनुवाद किया था। आनन्द नाम के अनेक स्थविर सिंहल में हुए हैं, जिन्होंने अनेक पालि ग्रन्थों की रचना की है, उन्हीं में से एक ये आनन्द वनरत्तन ‘उदुम्बरगिरि मेधङ्कर’ के शिष्य और बुद्धप्पिय या ‘चोलिय दीपंकर’ (रूपसिद्धि एवं पज्जमधु के रचयिता) तथा वैदेह स्थविर (समन्तकूटवण्णना एवं रसवाहिनी के लेखक) के गुरु थे।

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