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Kumbha Vivah (कुम्भ विवाह)

30.00

Author Shri Dhar Shastri
Publisher Shastri Prakashan
Language Sanskrit
Edition 1st edition, 2018
ISBN -
Pages 64
Cover Paper Back
Size 17 x 0.5 x 11 (l x w x h)
Weight
Item Code SP0026
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Description

कुम्भ विवाह (Kumbha Vivah) कन्या की कुण्डली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश किसी भी भाव में मंगल हो तो कन्या मंगली कही जाती है। चमत्कार चिन्तामणि में द्वितीय भाव में मंगल का होना भी मंगली परिचायक है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार यदि सप्तमेश (कोई भी ग्रह) अष्टमभाव में है और अष्टमेश (कोई भी ग्रह) सप्तम भाव में है, तो वह कन्या वैधव्ययोग वाली कही गयी है। इन सभी दोषों के परिहार के लिए धर्मशास्त्रों में कुम्भ विवाह का विधान दिया गया है। मुहूर्त चिन्तामणि पीयूषधारा के अनुसार कुम्भ एक उप लक्षण मात्र है। कुम्भ से घट, पीपल, दही मथने की मथानी भी गृहीत है। किसी एक के साथ कन्या का विवाह करने के बाद मनुष्यवर से विवाह करना चाहिए। धर्मसिन्धु एवं मुहूर्त चिन्तामणि के अनुसार सुवर्णमयी विष्णुप्रतिमा से विवाह करना चाहिए। इस तरह कई विकल्प दिये गये हैं।
शास्त्रों के अनुसार कुम्भ विवाह एकान्त में पीपल वृक्ष के समीप अथवा किसी मंदिर में करना चाहिए। सामान्यतया पीपल वृक्ष के समीप किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार तेल, खम्भा, सिल पोहना, देव-पितृ निमंत्रण आदि विवाहांग पूर्व प्रक्रियाओं के पश्चात् कुम्भ विवाह करना चाहिए। शास्त्रों में अथवा प्राप्त पद्धतियों में कुम्भ विवाह की प्रक्रियाओं का दिग्दर्शन मात्र है। प्राप्त पद्धतियों में मतान्तर भी बहुत हैं, जिससे प्रक्रियाओं में पर्याप्त वैषम्य है। साथ ही देशाचार- लोकाचार भी प्रविष्ट है। ऐसी स्थिति में सामान्य पुरोहितों को ‘कुम्भ विवाह’ कराने में शायद असुविधा हो रही है। काशी की प्रक्रिया तथा राजस्थान आदि पश्चिमी क्षेत्रों की प्रक्रियाओं में भी अन्तर है। जिस पुरोहित ने गुरुपरम्परा से कुम्भ विवाह को पढ़ा-देखा नहीं है, अथवा जिसे सभी मंत्र, कण्ठस्थ नहीं हैं। उनके लिए एक ऐसी पद्धति की अपेक्षा की जा रही थी जो सरल-सुगम-प्रत्येक संकल्प-मंत्र-प्रक्रिया आदि से युक्त हो कि पृष्ठ पलटते जांय, कार्य कराते जांय।

कहीं कोई अटकाव-भटकाव नहीं हो सके। मैंने गृहस्थ धर्म में प्रयुक्त होने वाले प्रायः सभी संस्कारों की पद्धतियाँ सरल-सुगम रीति से लिखी हैं जो पुरोहित समाज में समादृत हैं। कन्या के माता-पिता को यह विवाह प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। सामान्यतया लोक में घर की २-१ बड़ी-बूढ़ी सौभाग्यवती स्त्रियाँ, पुरोहित तथा कन्या को लेकर एकान्त में स्थित पीपल वृक्ष के पास जाती हैं और कन्या गौर-गणेश-कलश की पूजा करने के बाद पीपल वृक्ष की पूजा कर कच्चा सूत लेकर पीपल वृक्ष की सात परिक्रमा करती हैं। वृक्ष में सिन्दूर लगाती है। हाथ-पाँव धोकर वस्त्र बदलकर घर वापस आ जाती हैं। तदुपरान्त उसका विवाह किया जाता है। काशी में यह भी देखने को मिला है; कुम्भ के ऊपर स्वर्ण प्रतिमा के अभाव में नारियल को रख दिया जाता है और इस कुम्भ को लेकर पीपल वृक्ष की परिक्रमा करती है। किसी पद्धति में यह प्रक्रिया मुझे नहीं मिली है। मैंने अपनी इस “कुम्भ विवाह पद्धति” में दोनों प्रक्रियाओं को दिया है। प्रारम्भ में माता-पिता द्वारा किये जाने वाले “कुम्भ विवाह” की पूरी-पूरी प्रक्रिया दी गयी है। अंत में लोकाचार में होने वाली प्रक्रिया को दिया है। मैंने इस पद्धति को तैयार करने में पूरा-पूरा प्रयत्न किया है कि यह पद्धति सांगोपांग हो। सभी रीति-रिवाज आ जांय। सभी मंत्र पूरे पूरे हों। यदि एक मंत्र कई स्थलों पर बार-बार प्रयुक्त हो रहा है, तो प्रत्येक स्थल पर वह मंत्र पूरा-पूरा लिखा है, जिससे यदि किसी को मंत्र कण्ठस्थ नहीं है तो उसे असुविधा नहीं हो। केवल आप पृष्ठ पलटते जांय, कार्य कराते जांय।

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