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Kurma Puran (कूर्मपुराण)

200.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 15th edition
ISBN -
Pages 416
Cover Hard Cover
Size 19 x 2 x 27 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0099
Other Code - 1131

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Description

कूर्मपुराण (Kurma Puran) पुराण भारतीय संस्कृतिकी अमूल्य निधि है। यह एक ऐस्त विश्वकोश है, जिसमें धार्मिक, आर्थिक, नैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक आदि सभी विषय अति सरल एवं सुगम भाषामें वर्णित हैं। वेदोंमें वर्णित विषयोंका रहस्य पुराणोंमें रोचक उपाख्यानंकि द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इसीलिये इतिहास-पुराणोंके द्वारा वेदोपबृंहणका विधान किया गया है। पुराणोंके परिज्ञानक बिना वेद, वेदाङ्ग एवं उपनिषदोंका ज्ञाता भी ज्ञानवान् नहीं माना गया है। इससे पुराण-सम्बन्धी ज्ञानकी आवश्यकता और महत्ता परिलक्षित होती है।

महापुराणोंकी सूचीमें पंद्रहवें पुराणके रूपमें परिगणित कूर्मपुराण का विशेष महत्व है। सर्वप्रथम भगवान् विष्णुने कूर्म अवतार धारण करके इस पुराणको राजा इन्द्रद्युनको सुनाया था, पुनः भगवान् कूर्मने उसी कथानकको समुद्र-मञ्चनके समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारदादि ऋषिगणोंसे कहा। तीसरी बार नैमिषारण्यके द्वादशवर्षीय महासत्रके अवसरपर रोमहर्षण सूतके द्वारा इस पवित्र पुराणकी सुननेका सौभाग्य अ‌ट्ठासी हजार ऋषियोंको प्राप्त हुआ। भगवान् कूर्यके द्वारा कथित होनेके कारण ही इस पुराणका नाम कूर्मपुराण विख्यात हुआ।

रोमहर्षण सूत तथा शौनकादि ऋषियोंके संवादके रूपमें आरम्भ होनेवाले इस पुराणमें सर्वप्रथम सूतजीने पुराण-लक्षण एवं अठारह महापुराणों तथा उपपुराणोंके नामोंका परिगणन करते हुए भगवान्‌के कूर्मावतारकी कथाका सरस विवेचन किया है। कृर्मावतारके ही प्रसंगमें लक्ष्मीकी उत्पत्ति और माहात्म्य, लक्ष्मी तथा इन्द्रद्युम्नका वृत्तान्त, इन्द्रद्युम्नके द्वारा भगवान् विष्णुकी स्तुति, वर्ण, आश्रम और उनके कर्तव्यका वर्णन तथा परब्रह्मके रूपमें शिवतत्त्वका प्रतिपादन किया गया है। तदनन्तर सृष्टिवर्णन, कल्प, मन्वन्तर तथा युगोंकी काल गणना, वराहावतारकी कथा, शिवपार्वती-चरित्र, योगशास्त्र, वामनावतारकी कथा, सूर्य चन्द्रवंशवर्णन, अनसूयाकी संतति वर्णन तथा यदुवंशके वर्णनमें भगवान् श्रीकृष्णके मंगलमय चरित्रका सुन्दर निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें श्रीकृष्णके द्वारा शिवकी तपस्या तथा उनकी कृपासे साम्बनामक पुत्रकी प्राति, लिङ्गमाहात्य्य, चारों युगोंका स्वभाव तथा युगधर्म-वर्णन, मोक्षके साधन, ग्रह-नक्षत्रोंका वर्णन, तीर्थ-माहात्य, विष्णु-माहात्य्य, वैवस्वत मन्वन्तरके २८ द्वापरयुगोंके २८ व्यासोंका उल्लेख, शिवके अवतारोंका वर्णन, भावी मन्वन्तरोंके नाम, ईश्वरगीता, व्यासगीता तथा कूर्मपुराणके फलश्रुतिकी सरस प्रस्तुति है। हिन्दूधर्मके तीन मुख्य सम्प्रदायों- वैष्णाव, शैव एवं शाक्तके अद्भुत समन्वयके साथ इस पुराणमें त्रिदेवोंकी एकता, शक्ति- शक्तिमानमें अभेद तथा विष्णु एवं शिवमें परमैक्यका सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।

‘कल्याण’ वर्ष ७१के विशेषाङ्गके रूपमें पूर्व प्रकाशित इस पुराणके विषय-वस्तुकी उपयोगिता एवं पाठकोंके आग्रहको दृष्टिगत रखते हुए अब इसको पुराणके रूपमें सानुवाद प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। आशा है, प्रेमी पाठक गीताप्रेससे प्रकाशित अन्य पुराणोंकी भाँति इस पुराणको भी अपने अध्ययन-मनन तथा संग्रहका विषय बनाकर हमारे श्रमको सार्थक करेंगे।

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