Mudgal Puranam Part-1 (मुद्गल पुराणम् भाग-1)
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Author | Prof. Dalveer Singh Chauhan |
Publisher | Chaukhamba Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2021 |
ISBN | 978-81-218-0460-8 |
Pages | 846 |
Cover | Hard Cover |
Size | 19 x 5 x 24 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0076 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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Mudgal Puranam Part-1 (मुद्गल पुराणम् भाग-1) मुद्गल पुराण ९ खण्डों में लिखा गया एक विशाल पुराण है। इसके प्रथम खण्ड के प्रथम अध्याय में सर्वप्रथम शौनक-सूत सम्वाद है। कलियुग के प्रभाव से इस्त शौनकादि ऋषिगण नैमिषारण्य में जाकर रहने लगे थे, क्योंकि नैमिषारण्य (नींवसार) में कलियुग का प्रभाव नहीं था। वहीं वे यज्ञादि कार्य सुगमता से कर सकते थे। जहाँ प्रमण करते हुए महर्षि वेदव्यास के शिष्य श्री रोमहर्षण सूत जी पहुंचते हैं, तब सब शौनकादि ऋषियों ने उनसे पूछा कि हे सूत जी! हम सबने सब पुराणों का, वेदों का अध्ययन किया है। कोई ब्रह्मा को सबसे महान् देव, सृष्टिकर्ता भगवान् आदि मानता है तो कोई शंकर जी को, कोई विष्णु को तो कोई शक्ति-प्रकृति को तो कोई प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले सूर्य को भगवान् मानता है। अतः हम सब यह समझ नहीं रहे हैं कि वास्तविकता क्या है। इस पर सूत जी ने कहना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने कहा कि श्रीगणेश ही सब कुछ हैं। उन्होंने ही इस संसार की रचना की है। वे ही सभी देवों को शक्ति प्रदान करते हैं। वे निर्गुण और सगुण दोनों हैं। उन्हीं की कृपा से सब देवता अपने-अपने कार्य को सम्पन्न करते हैं। इसी क्रम में अपने कयन की पूर्ण पुष्टि के लिये वे सूत जी मुद्गल मुनि और प्रजापति दक्ष के संवाद को प्रस्तुत करते हैं। वे कहते हैं कि जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ किया था तब भगवान् शंकर को उस यज्ञ में नहीं बुलाया, क्योंकि उससे पूर्व भगवान् शंकर ने भी अपने श्वसुर प्रजापति दक्ष को नमन नहीं किया था, यह पी एक कारण था। तथा इस अपमान का बदला लेने के लिये ही प्रजापति दक्ष ने यह यज्ञ कार्यक्रम रखा था।
भगवान् शंकर उनके अन्य जामाताओं की भाँति धनलक्ष्मी से सम्पत्र नहीं थे। वे तो भस्म लगाकर रहते थे। अतः जब उन्हें आमन्चित नहीं किया तो सती के पास जाकर नारद जी ने कहा तो सती जी अपने पति भगवान् शंकर की अनुमति के बिना ही पिता के यज्ञ कार्यक्रम में चली गयीं। वहाँ अपने पति का अपमान वे सहन नहीं कर सकी और उन्होंने उस यज्ञ में स्वयं को आहुत कर यज्ञ को विध्वंस कर दिया। उसके बाद प्रजापति दक्ष की जो दुर्दशा हुई, वह अवर्णनीय है। इस दुर्दशा से दुःखी प्रजापति दक्ष ने मुदगल मुनि से पूछा कि मेरी इस दुर्दशा का कारण क्या है? तब मुद्गल मुनि ने कहा कि हे वक्ष! तुमने इस यज्ञ कार्य में श्रीगणेश की पूजा नहीं की थी, इसीलिये उन्होंने तुम्हारे यज्ञ कार्य में विध्न पैदा कर दिया, क्योंकि वे श्रीगणेश ही सबसे महान् देवता हैं। वे ही सर्वशक्तिमान्, वे ही पूर्ण ब्रह्म हैं। ये सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, शक्ति और सूर्य उन्हीं के प्रभाव से सृष्टि, पालन, संहार आदि कार्य करते हैं। इसी क्रम में मुट्ठल मुनि ने कहना प्रारम्भ किया कि जो कुछ आज तक इस भूमण्डल पर जय-पराजय हुई है, उन्हीं के कारण हुई है। जिसने उनको स्मरण नहीं किया, उसने सफलता नहीं प्राप्त की है। इसी क्रम में उन्होंने अनेकों उदाहरण दिये हैं। यही समस्त मुद्गल पुराण की संक्षिप्त कथा है।
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