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Mundaka Prashna Upanishad (मुण्डक-प्रश्न-उपनिषद)

135.00

Author Swami Swaymprakash Giri
Publisher Dakshinamurty Math Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2011
ISBN -
Pages 468
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code dmm0028
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Description

मुण्डक-प्रश्न-उपनिषद (Mundaka Prashna Upanishad) वेद भारतीय संस्कृति और सनातन हिन्दू धर्म का मूल है। इस अद्वितीय विधि का संरक्षण भारतराष्ट्र का प्रथम कर्तव्य है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने स्पष्ट लिखा है कि अध्यात्मवाद के बिना स्वाराज्य की रक्षा नहीं की जा सकेगी। उन्होंने ईशावास्योपनिषत् के प्रथम दो भन्यों को विश्व के अध्यात्मवाद की आधारशिला माना है। चालीस वर्षों से अध्यात्मवादहीनता का दुष्परिणाम काश्मीर से असम तक स्वाराज्य के विरोधी तत्त्वों के उद्गम व पोषण को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।

भारत में हिन्दू जनसंख्या ८५ प्रतिशत है, परन्तु वेद के शब्द भी जानने वालों की संख्या निरन्तर घटती जा रही है तो अर्थ जानने वाले दिन में दिया लेकर ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलते इसमें कहना ही क्या? वेद का सार बताने का दम्भ रखने वाले तुलसी- रामायण आदि ग्रन्थ स्वाध्याय का स्थान ले रहे हैं। ‘सार’ के किसी व्याख्यता को यह भी ज्ञात नहीं है कि कौन से वेदांश का ‘सार’ कहाँ निहित है। पदशः सार का प्रतिपादन तो दूर की बात है। मन्त्र के किसी पद का उचित या अनुचित शब्दसाम्य के आधार पर अर्थ कर स्वयं प्रतारित होना अथवा दूसरों को प्रतारित करना और बात है। वेदान्तमार्ग के अनुयायी, विशेषतः शाङ्करसम्प्रदाय के परमहंस संन्यासी, यथाकथञ्चित् उपनिषदों के संरक्षण व प्रचार में कटिबद्ध रहे हैं एवं अपने समस्त अध्यात्म, धर्म व दर्शन को उपनिषदों पर आधारित भी करते हैं व उन्हें ही अपने अध्यात्मजीवन का उत्स स्वीकारते हुए उनके स्वाध्याय को ही श्रवण मानते हैं।

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