Naradiya Jyotish (नारदीय ज्योतिष)
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Author | Dr. Binda Prasad Mishra |
Publisher | Vidyanidhi Prakashan, Delhi |
Language | Hindi |
Edition | 2016 |
ISBN | 978-9385539251 |
Pages | 239 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VN0042 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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नारदीय ज्योतिष (Naradiya Jyotish) ज्योतिष भारत का अत्यन्त प्राचीन और लोकोपकारी विज्ञान है। वह मानव जीवन के विविध पक्षों को पुष्ट करने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। इसकी अधिक लोकोपकारिता के कारण वेदांगों में ‘चक्षु’ के रूप में इसे मूर्धाभि- षिक्त किया गया है। भारतीय मनीषियों ने ज्योतिष को तीन स्कन्धों सिद्धान्त, संहिता और होरा में विभक्त किया है। आचार्य वराहमिहिर जैसे विद्वानों ने ज्योतिष के उक्त तीनों स्कन्धों पर अलग अलग स्वतंत्र ग्रंथ लिखे । ज्योतिष विषयक ऐसा कोई एक स्वतंत्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है जिसमें ज्योतिष शास्त्र के उक्त तीनों स्कन्धों का विस्तार पूर्वक प्रतिपादन हो ।
पुराणों में ज्योतिष का विकसित स्वरूप देखने को मिलता है। नारद पुराण में ज्योतिष का बहुत ही विशद विवेचन तीन अध्यायों में प्राप्त होता है। नारद पुराण के पूर्व भाग में द्वितीय पाद के ५४ वें अध्याय में सिद्धान्त-स्कन्ध, ५५. वें अध्याय में होरा-स्कन्ध, तथा ५६ वें अध्याय में संहितास्कन्ध का बहुत ही विस्तार से प्रतिपादन हुआ है। पुराण शैली में प्रतिपादित ज्योतिष के तीनों स्कन्धों को सारर्गाभत सामग्री ज्योतिष के अध्येता को बहुत प्रभा- वित करती है। अतएव नारद पुराण के ज्योतिष विषयक अंशों का आधुनिक शोध की सरणि पर अध्ययन अपेक्षित था जिसकी पूति प्रस्तुत ग्रन्थ करता है।
प्रस्तुत ग्रंथ में ज्योतिष के तीनों स्कन्धों पर विचार किया गया है। इसमें पाँच अध्याय हैं। प्रथम अध्याय परिचयात्मक है। उसके अन्तर्गत ज्योतिष की प्राचीनता तथा उसका महत्त्व, ज्योतिष की व्युत्पत्तिपरक परिभाषा, ज्योतिष के उद्भत्र एवं विकास का इतिहास, ज्योतिषशास्त्र में स्कन्ध-कल्पना, भारतीय ज्योतिषशास्त्र के इतिहास में नारद पुराण का स्थान, शास्त्रों के प्रति- पादन की पौराणिक शैली पर विचार, नारद पुराण में ज्योतिष शास्त्र के प्रति- पादन की प्रासंगिकता तथा नारद पुराण में स्कन्ध कल्पना और उसके बौचित्य का प्रतिपादन हुआ है। द्वितीय अध्याय में सिद्धान्त विचार के अन्तर्गत गणित विषय की उपयोगिता तथा नारद पुराण में प्राप्त गणित क्षेत्र पर विस्तृत रूप से विचार हुआ है। तृतीय अध्याय में जातक के अन्तर्गत गणित तथा जातक के अध्ययन का पौर्वापर्य, जातक परिचय, जातक विचार के प्रयोजन तथा जातक के विषय क्षेत्र प्रतिपादित किए गये हैं। चतुर्थ अध्याय में संहिता विचार के प्रसंग में संहिता की परिभाषा तथा संहिता के व्यापक क्षेत्र का उल्लेख है। पंचम अध्याय के अन्तर्गत अन्य पुराणों की अपेक्षा नारद पुराण में ज्योतिष की विशालता तथा भारतीय ज्योतिष विद्या के विकास में नारद पुराण का योगदान प्रस्तुत है । अन्त में सहायक ग्रंथों की सूची दी गई है।
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