Nirnay Sindhu (निर्णय सिन्धु)
₹1,000.00
Author | Pt. Jwala Prasad Mishra |
Publisher | Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | - |
Pages | 976 |
Cover | Hard Cover |
Size | 17 x 4 x 24 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KH0023 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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CompareDescription
निर्णय सिन्धु (Nirnay Sindhu) चारों वर्ण और चारों आश्रमोंके आचार, विचार तथा सम्पूर्ण लोक्व्यवहार, दाय-भाग, संस्कार, व्रतानुष्ठान, महीनोंके उत्सव संक्रान्तिविधान, व्रतादिके निर्णय, दानादिका समय और फल, ग्रहणसमयके कृत्य, पापोंके मायश्चित्त, यह सब भिन्न २ स्थलोंमें धर्मशास्त्र और पुराणोंमें वर्णन किये हैं, एवं एक ही धर्मशास्त्र वा पुराणमें सब विषयकी पूर्ति नहीं पाई जाती, एकके साथ दूसरेकी अपेक्षा लगी रहतीहै, और कभी २ व्रत तथा उत्सवोंके निर्णयमें बडी झंझट पडती है इन अभावोंके दूर करनेके लिये महानुभावोंने सम्पूर्ण धर्मशास्त्र तथा पुराणोंका सार संग्रह करके बडे २ निबन्धोंकी रचना की है, उनमें कृत्यकल्पतरु और हेमाद्रि आदि बडे २ निबन्ध हैं, परन्तु यह इतने बृहत् होगये हैं कि, न तो सर्वसाधारणको उनकी उपलब्धि ही होसक्ती है और न बिना पूर्ण विद्वत्ताके उनको कोई समझ सकता है, उन निबन्धोंकी बृहदाकार देखकर ही प्रसिद्ध स्मृतिशास्त्रज्ञाता कमलाकरभट्टने इन बृहत् निबन्धों तथा धर्मशास्त्र, पुराणोंका सार संग्रह करके प्रयोजनीय समस्त विषयोंसे पूर्ण “निर्णयसिन्धु” नामक ग्रंथकी रचना की, इसमें इन पंडितवर्यका पांडित्य भी पूर्णरूपसे झलकता है परन्तु साधारण मनुष्योंको इसका अर्थभी सुलभ नहीं है, इन्होंने जहाँ तहाँ अपने ग्रन्थमें गौडमन्तव्यों का खण्डन कियाहै इससे विदित होता है कि, यह गौडनिबन्धोंके सर्वथा सहमत न थे।
अस्तु, तो भी यह ग्रन्थ धर्मनिबन्धोंमें बहुत उत्कृष्ट समझा जाता है, इसकी रचनाभी न्याय मीमांसासे गर्भित है, और कहीं कहीं इसकी पंक्तियें कठिनता लिये हुए हैं ‘धर्मसिंधु’ नामक एक वार्तिक संस्कृत ग्रंथ इसका टीकारूप समझा जाता है, परन्तु वहभी संस्कृतमें ही होनेके कारण सर्व साधारणको उपयोगी नहीं समझा जाता. इस कारण यह आवश्यकता हुई कि, सम्पूर्ण वर्णाश्रमोके प्रयोजनीय धर्मकर्मके साररूप इस ग्रंथका हिन्दी भाषामें सबके समझने योग्य टीकाका निर्माण किया जाय यद्यपि यह कार्य दीर्घकालसाध्य और विशेष पीरश्रमसापेक्ष था तो भी सर्व साधारणका उपकार विचार कर इसकी टीका करनेका परिश्रम कुछ विशेष न समझा और इसका सरल सुगम सबके समझने योग्य ऐसा अनुवाद लिखा है कि, इसकी कठिन पंक्तिभी भली प्रकार सर्वसाधारणकी समझमें आसकेंगी, और कर्म-काण्डमें जो कहीं कहीं वैदिक मंत्रोंकी प्रतीकें इसके मूलमें थीं मैंने नोटमें वह पूरे मंत्र पतेसहित लिखदिये, और इसकी रचनाको अंकोंमें विभक्तकर अंक डालकर नीचे उसका तिलक लिखाहै, जिससे समझनेमें किसी प्रकार भी कठिनाई न पडे इस प्रकार इस ग्रंथका भाषानुवाद होनेसे हिन्दीभाषाके भंडारमें एक अनुपम ग्रंथकी वृद्धि हुई है।
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