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Pali Sahitya Ka Itihas (पालि साहित्य का इतिहास)

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Author Rahul Sankrityayan
Publisher Uttar Pradesh Hindi Sansthan
Language Hindi
Edition 5th edition, 2011
ISBN 978-81-89989-76-7
Pages 253
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code UPHS0017
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Description

पालि साहित्य का इतिहास (Pali Sahitya Ka Itihas) हिन्दी और भारतीय भाषाओं में ऐसे साहित्यकारों और विद्वानों की भरी-पूरी परम्परा है, जिन्होंने विभिन्न शैलियों में रचनाकर्म ही नहीं किया, अपितु प्राचीन संस्कृति, इतिहास और दर्शन को भी इस तरह प्रस्तुत किया कि वह सामान्य पाठक के लिए भी सुगम और सुलभ हो सके। इस परम्परा में महापंडित राहुल सांकृत्यायन अग्रगण्य हैं। उनकी अनेक कहानियाँ और उपन्यास सिर्फ हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि ही नहीं करते, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास की गौरवपूर्ण यात्रा को भी शब्द देते हैं। भारतीय संस्कृति और इतिहास के विविध रूपों को आत्मसात करने और उसे शब्द देने के लिए वह अन्तिम सांस तक समर्पित रहे। उनके समग्र चिंतन का निष्कर्ष यह था कि भारत में विचारों को फलने-फूलने का सर्वाधिक अवसर मिला और हमारी संस्कृति में हमेशा मानवीय मूल्यों को सर्वोच्च मान्यता मिलती रही। यह परम्परा अक्षुण्ण रहे, इस महान लक्ष्य हेतु ही उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व और लेखन समर्पित रहा।

राहुल जी की यह पुस्तक ‘पालि साहित्य का इतिहास’ मूलतः तीन खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में भारत में प्राप्त प्राचीन बौद्ध पुस्तकों के बारे में संक्षिप्त जानकारी है। इनमें प्राचीन पालि त्रिपिटक सुत्तपिटक (दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय व संयुक्तनिकाय आदि) विनयपिटक और अभिधम्मपिटक आदि प्रमुख हैं। मज्झिमनिकाय में ही भगवान बुद्ध ने धर्म की अत्यन्त सटीक व्याख्या की है और कहा है कि यह धर्म रूपी नाव जीवन रूपी नदी पार करने के लिए है, सिर पर रख कर ढोने के लिए नहीं। उल्लेखनीय है कि त्रिपिटक रूप में ही भगवान बुद्ध के उपदेश उनके निधन के कुछ समय बाद संग्रहीत किये गये थे और बौद्ध धर्म में इनकी असाधारण मान्यता है। पुस्तक के दूसरे खण्ड में श्रीलंका की पालि रचनाओं का विशद और तथ्यपूर्ण विवरण है। तीसरे और अंतिम खण्ड में बर्मा व थाई देश आदि में प्रचलित पालि पुराग्रंथों के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध करायी गयी है।

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