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Paniniya Praveshika (पाणिनियप्रवेशिका)

170.00

Author Dr. Vishnukant Pandey
Publisher Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan
Language Sanskrit
Edition 1st edition, 2014
ISBN -
Pages 103
Cover Hard Cover
Size 21 x 1 x 13 (l x w x h)
Weight
Item Code UPSS0029
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Description

पाणिनियप्रवेशिका (Paniniya Praveshika) किसी भी भाषा को वैज्ञानिक दृष्टि से गूंथने तथा इसमें अपेक्षित विभक्ति, समास, सन्धि, प्रकृति, प्रत्यय, उपसर्ग, क्रिया, काल आदि का प्रयोग करने की विधि हमें व्याकरण के माध्यम से ज्ञात होती है। व्याकरण हमें भाषा की क्रमबद्धता तथा शुद्धता और उच्चारण का ज्ञान कराता है।

वस्तुतः किसी भी भाषा को सीखने के लिये उसका व्याकरण सर्वप्रथम सीखना आवश्यक है। किसी भी भाषा का हम अनेक प्रकार से, अनेक शैलियों में अनेक पर्यायों का उपयोग करते हुए उच्चारण कर सकते हैं। इनमें से कौन सा पर्याय हमारे भाव-सम्प्रेषण को हमारे कथ्य के अनुरूप बनाता है, यही हमारी भाषा की विशेषता है। यह सब भाषा के व्याकरण ज्ञान से सम्भव है।

संस्कृत के देवभाषा माना गया है, यह भी माना जाता है कि संस्कृत भाषा समस्त भाषाओं की जननी है, इसका प्रमाण हमें विभिन्न भाषा परिवारों के शब्दों के साम्य से ज्ञात होता है। संस्कृत के माता शब्द को अंग्रेजी में मदर, फारसी में मादर कहा जाता है। संस्कृत के भातृ शब्द को हिन्दी में भाई अंग्रेजी में ब्रदर तथा फारसी में बिरादर कहते हैं। इसी प्रकार के अनेकानेक अन्यान्य उदाहरण विद्यमान हैं। संस्कृत भाषा बहुत समृद्धभाषा है और इसका कारण है इसका व्याकरण।

प्रस्तुत ग्रन्थ ‘पाणिनीयप्रवेशिका’ इसी संस्कृत भाषा का प्रारम्भिक ग्रन्थ है। जो संस्कृत के पाणिनीय व्याकरणशास्त्र में प्रवेश करने के लिये द्वार मात्र है। इस ग्रन्थ के लेखक जगद्गुरुरामानन्दचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के व्याकरण विभाग उपाचार्य डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा अवश्य ही धन्यवाद के पात्र हैं। इन्होंने अपनी प्रखर मेधा से इसका प्रणयन कर संस्कृत जगत् की बहुत बड़ी सेवा की है। निश्चित ही यह ग्रन्थरत्न अमर ख्याति प्राप्त करेगा तथा विषय के जिज्ञासु छात्र इससे लाभन्वित होंगे।

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