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Paschatya Darshan Ka Samikshatmak Itihas (पाश्चात्य दर्शन का समीक्षात्मक इतिहास)

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Author Y. Masiah
Publisher Motilal Banarasi Das
Language Hindi
Edition 6th edition, 2016
ISBN 978-81-208-24713-3
Pages 426
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code MLBD0056
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Description

पाश्चात्य दर्शन का समीक्षात्मक इतिहास (Paschatya Darshan Ka Samikshatmak Itihas) समसामयिक विचारधारा में ‘दर्शन’ (Philosophy) और ‘तत्त्वत-मीमांसा’ (Metaphysics) के बीच भेद किया जाता है। ‘दर्शन’ के स्वरूप के विषय में कहा जाता है कि इसका सम्बन्ध वैज्ञानिक ज्ञान के ‘स्पष्टीकरण’ से है। यहाँ ‘स्पष्टीकरण’ से अर्थ लगाया जाता है कि विज्ञान का विषय ‘भाषा’ तथा भाषा-विषयक भाषा-चिन्हों के जोड़ने के नियमों में निहित है। इस मत के अनुसार प्रायः लोग गलत समझते हैं कि मन-निरपेक्ष है, अर्थात् मन से परे स्वतंत्र पदार्थों की निजी सत्ता है, जिन्हें वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशाला में खोज निकालते हैं। भाषाबद्ध संवेदनाओं को ही वैज्ञानिक जानते हैं और इसलिए ‘भाषा’ तथा भाषा-विषयक प्रतीकों (Symbols) के जोड़ने के नियमों को हमें स्पष्ट करना चाहिए। इसलिए ‘दर्शन’ का सम्बन्ध भाषा-दर्शन (Linguistics) तथा न्यायदर्शन (Logistic) तक ही सीमित समझा जाता है।

अब ‘तत्त्व-मीमांसा’ का विषय स्वतंत्र पदार्थों की निजी सत्ता से सम्बन्ध रखता है। परन्तु मन से परे, स्वतंत्र तथा स्वसत्तात्मक पदार्थों का अस्तित्व समस्याहीन है, अर्थात् यह ऐसी समस्या ही नहीं है, जिसके विषय में अर्थपूर्ण गवेषणा की जा सके। अतः, तत्त्व-मीमांसा दर्शन-विषय नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि दर्शन का इतिहास ‘दर्शन’ से सम्बन्ध रखता है, न कि तत्त्व-मीमांसा से। इस पुस्तक में दर्शन को वैचारिक कला माना गया है और इसी दृष्टिकोण से दार्शनिकों की देन का मूल्यांकन किया गया है। फिर पाश्चात्य दर्शन में विश्लेषात्मक और संश्लेषात्मक वाक्यों के बीच के भेद पर विशेष प्रकाश डाला गया है। काण्ट के दर्शन की समीक्षा को एकदम समसामयिक बना दिया गया है। पारिभाषिक शब्दों में भी हेर-फेर कर दिया गया है। यथासम्भव रचना-सुधार पर भी ध्यान दिया गया है।

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