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Paschimi Asia (पश्चिमी एशिया) 632-2006

170.00

Author Dr. K.K Kaul
Publisher Uttar Pradesh Hindi Sansthan
Language Hindi
Edition 4th edition, 2017
ISBN 978-81-834527-2-1
Pages 564
Cover Paper Back
Size 14 x 3 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code UPHS0016
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Description

पश्चिमी एशिया (Paschimi Asia) मनुष्य आज विकास की जिन ऊँचाइयों को छू रहा है, इसके पीछे विभिन्न संस्कृतियों का अभूतपूर्व योगदान है। अब यह एक स्थापित सच्चाई है कि इन सभी ने समय-समय पर एक-दूसरे से कम या अधिक सीखा और पारस्परिक आदान-प्रदान से जीवन को अधिक मानवीय और सुविधाजनक बनाया। विशेषकर निकटवर्ती संस्कृतियों के बीच यह आदान-प्रदान इतना प्रगाढ़ रहा कि आज उन्हें अलग करना मुश्किल है। अपनी महानता और विराटता के बीच भारतीय संस्कृति और चीनी, यूनानी व मोसोपोटामिया (इजिप्ट) संस्कृतियों के बीच भी ऐसे ही आत्मीय सम्बन्ध विकसित हुए। इन्हें देखना-समझना और प्रेरणा ग्रहण करना आज भी आहह्लादित करता है।

भारतीय संस्कृति चीन के साथ-साथ पश्चिम एशिया में भी तेजी से अपनी छाप छोड़ने के लिए जानी जाती है। वह पश्चिम एशिया जो एक ओर भारत तो दूसरी ओर यूनानी/चीनी आदि संस्कृतियों के निकट सम्पर्क में थी, इस क्षेत्र का इतिहास काफी उथल-पुथल भरा रहा है। ऐसे में ज्ञान-विज्ञान ही नहीं, भारत व पश्चिम एशियाई देशों के बीच आर्थिक-सांस्कृतिक सम्बन्ध भी अत्यन्त प्रगाढ़ हुए इन सम्बन्धों को समझने में सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. के. के. कौल की यह पुस्तक ‘पश्चिमी एशिया’ अत्यन्त उपयोगी है। 20 अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में जिस तरह से समूचे पश्चिमी एशिया के इतिहास को शब्द दिये गये हैं, वह ‘गागर में सागर’ सरीखे हैं। पहले अध्याय में जहाँ पश्चिमी एशिया का संक्षिप्त परिचय दिया गया है, वही अगले अध्यायों में तुर्की (आटोमन) यूनान, मिस्र व ईरान आदि के इतिहास पर पर्याप्त और तथ्यपरक प्रकाश डाला गया है। इन अध्यायों में अरब और इस्राइल आदि पर भी सारगर्भित सामग्री है। पुस्तक का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इसमें भारत की आजादी के बाद के कुछ दशकों का पश्चिमी एशियाई इतिहास संकलित है।

पश्चिमी एशिया के विभिन्न देशों में समय-समय पर भिन्न शासन पद्धतियाँ प्रभावी रहीं, ऐसे में इसकी उपादेयता और बढ़ जाती है। पश्चिमी एशिया सम्बन्धी यह विशिष्ट सामग्री हमें भारतीय इतिहास/संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को भी अधिक बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है। जिस तरह से उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के हिन्दी ग्रंथ अकादमी प्रभाग की यह पुस्तक लोकप्रिय रही है, इसका अब चौथा संस्करण प्रकाशित हो रहा है, उससे इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। विश्वास है सभी जागरूक पाठक वर्गों के बीच इस पुस्तक ‘पश्चिमी एशिया’ के प्रस्तुत चतुर्थ संस्करण की भी उपयोगिता यथावत बनी रहेगी।

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