Patanjal Yoga Sutra Vritti (पातञ्जलयोगसूत्रवृत्तिः)
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Author | Dr. Vimla Karnatak |
Publisher | Chaukhamba Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2nd edition, 2016 |
ISBN | - |
Pages | 402 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 3 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0032 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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पातञ्जलयोगसूत्रवृत्तिः (Patanjal Yoga Sutra Vritti) योगसूत्र के प्रणेता महर्षि पतञ्जलि हैं। योग सूत्र में कुल जारा पाद हैं। इनके नाम हैं – समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद तथा कैवल्यपाद। योग बोर समाधि समानश्यक शब्द हैं। समाधिपाद में योग का लक्षण और उसके भेव-प्रभेदों पर मुख्यरूप से विचार किया गया है। ‘साधन’ शब्द का अर्थ उपाय है। योग किस उपाय से सम्पादित किया जाय ? इसका उत्तम, मध्यम तथा अधम अधिकारि-भेद से द्वितीय साबनपाद में व्यापकरूप से विश्लेषण किया गया है।
योग प्राप्ति की आकांक्षा से अनुष्ठित साधनाभ्यास जब तक अपने मुख्य लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाता है, तब तक योगाभ्यास को दार्षावधि के अन्तराल में साधक को विशिष्ठ सामच्यं प्राप्त होता है।इसे हो विभूति जयवा सिद्धि भो कहते हैं। पतब्जलि ने इस सामथ्यं-विशेष के विभिन्न आयामों की व्यापक चर्चा तृतीयपाद में की है। अत। इसका नाम विभूतिपाद पड़ा। कैवल्य जो सभी पुरुषार्थों में अन्तिम पुरुषार्थ है, चतुर्थपाद में व्याख्यायित हुआ है।
योग स्वानुभूति का विषय है। यह तर्कप्रधान नहीं, अपितु अनुभूतिप्रधान शास्त्र है। योग की प्रयोगशाला में ही सांख्य के तत्त्वों की परीक्षा की जा सकती है। यौगिक विषयों का यथोचित स्वरूप समझा जा सकता है। प्रेय औष श्रेय मार्ग, जो बन्घ और मोक्ष के वाहक हैं, परस्पर एक-दूसरे पर अवलम्बित हैं। बन्धमूलक प्रेयमार्ग का अनुसरण हुए विना मोक्षमूत्ररु श्रेयमार्ग का द्वारा उद्घाटित नहीं हो सकता है। बद्ध व्यक्ति के हो मुक्ति की चर्चा की जाती है।
भला, मुक्त की कैसी परा मुक्तावस्था ? बतः योगशास्त्र में ‘दृश्य’ पदार्थ की विस्तृत व्याख्या की गई है। दृश्य के ययोचित स्वरूप को समझकर द्रष्टा पुरुष तद्भिन्न स्वस्वरूप का पार्थक्य कर पाता है। सर्वथा भिन्न दो मौलिक पदार्थों जड तथा चेतन में अभेव की कलना कर तदनुरून व्यवहार करना ‘बन्त्र है तो दो भिन्न पदायों की भिन्नत्वेन अनुभुति होना, तात्विक दृष्टि होना ‘मोक्ष’ है। पतष्जलि ने तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम् (यो. तू. १/३) द्वाया इसो दार्शनिक पक्ष को मुखषित किया है।
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